पंजाब के बाद आम आदमी पार्टी (AAP) अब पड़ोसी राज्य हिमाचल में भी वैसे ही करिश्मा की उम्मीद के साथ तैयारी में जुट रही है। पहाड़ी राज्य के समीकरण स्पष्ट करते हैं कि पार्टी के सामने अभी भी ‘पहाड़’ जैसी चुनौती खड़ी है। इसमें AAP के सामने संगठनात्मक ढांचा तैयार करना सबसे बड़ी समस्या है। वहीं हिमाचल के लोग इससे पहले तीसरे विकल्प के तौर पर नौ सियासी दलों को नकार चुके हैं।
हिमाचल में 2019 में लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को चारों सीट पर चुनाव लड़ने के बाद मात्र 2.06 फीसदी वोट मिले। वहीं पिछले साल सोलन नगर निगम चुनाव में भी AAP ने सभी वार्डों से प्रत्याशी उतारे और चुनावी मैदान में ताल ठौकी। यहां भी AAP को 2 फीसदी से कम वोट ही मिल पाए। वहीं 52 लाख से ज्यादा मतदाताओं वाले हिमाचल में अभी तक आम आदमी पार्टी के मात्र 2.25 लाख सदस्य ही हैं। पार्टी अभी तक हिमाचल के लोगों का व्यापक सपोर्ट सदस्यता के तौर पर पाने में नाकाम रही है। अब पंजाब की जीत के बाद इसमें तेजी आ सकती है।
राजनीतिक पंडितों के मुताबिक AAP यदि प्रदेश की सभी 68 सीटों पर चुनाव लड़ती है तो सियासी समीकरण बिगाड़ सकती है। कांग्रेस-भाजपा दोनों दलों को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। खासकर कांग्रेस खुद AAP के चुनाव लड़ने से होने वाले नुकसान को लेकर खुद ही ज्यादा सतर्क है। वहीं पिछले दो सप्ताह में AAP में शामिल हुए अधिकांश लोग कांग्रेस पृष्ठभूमि के रहे हैं।
6 अप्रैल की रैली से तय होगा पार्टी का भविष्य
AAP हिमाचल में पूरी ऊर्जा के साथ चुनाव लड़ती है तो सत्ता विरोधी लहर के फायदे से उसके अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद की जा सकती है। पहाड़ पर AAP की सियासत किस करवट बैठती है इसका अंदाजा 6 अप्रैल को मंडी में पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और पंजाब के CM भगवंत मान के रोड शो से ही हो जाएगा।