पिताश्री की स्मृति में !

26 अगस्त, 1985 ! इस दिन मेरे पिताश्री संपादक ‘देहात’ श्री राज रूप सिंह वर्मा का हाथ मेरे सिर से उठ गया था। उन्होंने दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में अन्तिम सांस ली। तब मैं तथा मेरी पत्नी कान्ति वर्मा, नगर के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. एस.के.डी. भारद्वाज, प्रमुख आर्यजन गुरुदत्त जी एवं ‘देहात’ के पूर्व उप संपादक जयनारायण ‘प्रकाश’ पिताश्री की शैया के पास खड़े थे। नश्वर संसार से प्रस्थान के समय उन्होंने दोनों हाथ जोड़ कर ऊपर को उठाये और बोले- गोविन्द और कान्ति, तुम दोनों ने मेरी बड़ी सेवा की है। ये उनके अंतिम शब्द थे।

उन्होंने न केवल एक पिता के रूप में वरन् एक स्नेहमयी माता,गुरु, मित्र, पथ प्रदर्शक रूप में जीवन भर मार्ग दर्शन किया। उन्होंने अपना जीवन आज़ादी के सिपाही के रूप में आरम्भ किया। डॉ.बाबू राम, डॉ. रामनाथ वर्मा, सावित्री देवी, रमेश चन्द्र वकील, कामरेड अशोक, कामरेड हनीफ, किशोरी लाल शर्मा कपिल आदि उनके जेल के सह यात्री रहे।

किसान-मजदूर, पीड़ित एवं उपेक्षित वर्ग के सदा हिमायती रहे। मुजफ्फरनगर में पहली बार सफाई कर्मचारियों को संगठित किया, उनकी एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे। जब रविवार को भी डाकघर खुलते थे और डाक विभाग के कर्मचारियों को पूरे महीने, सातों दिन ड्यूटी देनी पड़ी थी, तब डाक कर्मियों की यूनियन का गठन किया और लम्बे समय तक उसके अध्यक्ष रहे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कांग्रेस की मेम्बरशिप छोड़ दी।

पिताश्री के चरणों में रहकर मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। उन्होंने कहा कि जिन्दगी में कभी चुनाव मत लड़ना। सच्ची बात लिखना लेकिन कटु शब्दों से बचना। लिखते समय सोचना कि जो तुम किसी के विषय में लिख रहे हो, यदि तुम्हारे विषय में यही लिखा जाये तो तुम्हारे मन में क्या प्रतिक्रिया होगी !

एक छोटे शहर का छोटा सा अखबार निकालते हुए उनके विचार और पहुंच बड़ी थी। अनेक मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, आई.ए.एस व आई.पी.एस. अधिकारियों से निजी संपर्क थे। कभी किसी से किसी पद, किसी कोटा-परमिट, लाइसेंस या आवंटन की अकांक्षा नहीं रखी।

मैं कह सकता हूं कि पिताश्री की सलाह व नसीहतों के पालन से मुझे जीवन में सफलता मिली किन्तु जब भी मुझसे उनके विचारों की अवहेलना हुई- उसका परिणाम गलत ही निकला। वस्तुतः माता-पिता का मार्ग दर्शन ईश्वरीय कृपा के तुल्य है। जो इस मार्ग को समझ गया उसका जीवन सार्थक है। आज 80 वर्ष की आयु में जो कुछ अच्छा है, वह माता-पिता के आशीर्वाद का ही फल है। उनके श्रीचरणों में कोटिश प्रणाम।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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