भारत कहीं उच्च, गहरी और व्यापक स्तर की भूमिका का हकदार है: पीएम मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को अमेरिका की अपनी पहली राजकीय यात्रा पर रवाना हो गए। इससे पहले अमेरिकी अखबार द वॉल स्ट्रीट जर्नल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच संबंध पहले से कहीं अधिक मजबूत और गहरे हैं। पीएम ने कहा कि दोनों देशों के नेताओं के बीच ‘अभूतपूर्व विश्वास’ है। इसी के साथ पीएम ने चीन के साथ रिश्तों को लेकर भी बात की। उन्होंने कहा कि चीन के साथ सामान्य द्विपक्षीय संबंधों के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बेहद जरूरी हैं।

भारत-चीन के रिश्तों पर क्या बोले पीएम मोदी?
भारत-चीन संबंधों पर मोदी ने कहा, ‘‘सामान्य द्विपक्षीय संबंधों के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता जरूरी है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने, कानून के शासन का पालन करने और मतभेदों और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान में हमारा मूल विश्वास है। साथ ही भारत अपनी संप्रभुता और गरिमा की रक्षा के लिए पूरी तरह से तैयार और प्रतिबद्ध है।’’

गौरतलब है कि पूर्वी लद्दाख की गलवां घाटी में 15 जून, 2020 को भारत और चीनी सेनाओं के बीच संघर्ष हो गया था। यह पिछले पांच दशक में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर इस तरह का पहला संघर्ष था और इससे द्विपक्षीय संबंधों में तनाव आ गया था। दोनों देशों के बीच इसके बाद से तनाव कम करने के लिए मंत्री व कमांडर स्तरीय वार्ता हो चुकी है लेकिन अभी तक स्थितियां पूरी तरह सामान्य नहीं हुई हैं।

भारत की वैश्विक भूमिका, रूस-यूक्रेन युद्ध पर कही ये बात
इस इंटरव्यू में वैश्विक राजनीति और संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका की चर्चा करते हुए मोदी ने यह भी कहा, ‘भारत कहीं उच्च, गहरी और व्यापक स्तर की भूमिका का हकदार है।’’ रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को लेकर भारत की भूमिका की आलोचना से जुड़े एक सवाल पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत इस मामले में तटस्थ नहीं है बल्कि शांति के पक्ष में है।

उन्होंने कहा, ‘‘सभी देशों को अंतरराष्ट्रीय कानून और देशों की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए। विवादों को ‘कूटनीति और बातचीत’ के जरिए हल किया जाना चाहिए, युद्ध के साथ नहीं।’’ मोदी ने कहा, ‘‘कुछ लोग कहते हैं कि हम तटस्थ हैं। लेकिन हम तटस्थ नहीं हैं। हम शांति के पक्ष में हैं। दुनिया को पूरा विश्वास है कि भारत की सर्वोच्च प्राथमिकता शांति है।’’

मोदी ने कहा कि उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से कई बार बात की है। उन्होंने कहा कि उन्होंने हाल ही में मई में जापान में जी-7 शिखर सम्मेलन के मौके पर जेलेंस्की से बात की थी। उन्होंने कहा, ‘‘भारत जो कुछ भी कर सकता है, वह करेगा। संघर्ष को समाप्त करने और स्थायी शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सभी वास्तविक प्रयासों का भारत समर्थन करता है।

’’संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बदलाव की पैरोकारी
मोदी ने अपने साक्षात्कार में कहा कि संयुक्त राष्ट्र जैसी वैश्विक संस्थाओं को बदलना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘प्रमुख संस्थानों की सदस्यता को देखिए। क्या यह वास्तव में लोकतांत्रिक मूल्यों की आवाज का प्रतिनिधित्व करते हैं? अफ्रीका जैसी जगह… क्या इसकी कोई आवाज है? भारत की इतनी बड़ी आबादी है और यह वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक उज्ज्वल स्थान है, लेकिन क्या यह मौजूद है?’’

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का हिस्सा बनने की भारत की इच्छा पर प्रधानमंत्री ने दुनियाभर में शांति अभियानों में सैनिकों के योगदानकर्ता के रूप में देश की भूमिका की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा कि परिषद की मौजूदा सदस्यता का मूल्यांकन होना चाहिए और दुनिया से पूछा जाना चाहिए कि क्या वह चाहती है कि भारत वहां रहे?

मोदी ने कहा, ‘‘मैं स्पष्ट कर दूं कि हम भारत को किसी देश की जगह लेने के रूप में नहीं देखते हैं। हम इस प्रक्रिया को भारत के दुनिया में अपना सही स्थान हासिल करने के रूप में देखते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘आज की दुनिया पहले से कहीं अधिक परस्पर जुड़ी हुई और एक दूसरे पर निर्भर है। लचीलापन पैदा करने के लिए, आपूर्ति श्रृंखलाओं में अधिक विविधीकरण होना चाहिए।’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका जन्म स्वतंत्र भारत में हुआ है और यही कारण है कि उनकी विचार प्रक्रिया, उनका आचरण या फिर वह जो कहते और करते हैं, वह देश की विशेषताओं और परंपराओं से प्रेरित और प्रभावित है। पीएम ने कहा, ‘‘मुझे इससे अपनी ताकत मिलती है। मैं अपने देश को दुनिया के सामने वैसे ही पेश करता हूं जैसा मेरा देश है, और खुद को भी, जैसा मैं हूं।’’

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