नई दिल्ली। देश की राजनीति में हाल के वर्षों में महिला कल्याण को लेकर जोर देखा जा रहा है। कई राज्यों में महिलाओं के बैंक खातों में सीधे नकद हस्तांतरण (Cash Transfer) की योजनाएं तेजी से लागू की जा रही हैं। थिंक टैंक PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च की हालिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि वित्तीय वर्ष 2025-26 में 12 राज्यों ने महिला कल्याण योजनाओं पर कुल 1.68 लाख करोड़ रुपये खर्च किए।
रिपोर्ट के अनुसार, तीन साल पहले देश में केवल दो राज्यों में महिलाओं को सीधे नकद भुगतान की योजनाएं संचालित थीं, जो अब बढ़कर 12 राज्यों तक पहुंच चुकी हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की महिलाओं को हर महीने सीधे लाभ पहुँचाना है। इनमें असम और पश्चिम बंगाल ने अपने बजट आवंटन में क्रमशः 31 प्रतिशत और 15 प्रतिशत की वृद्धि की है।
तमिलनाडु की ‘कलाईनार मगलीर उरीमाई थोगई थिट्टम’, मध्य प्रदेश की ‘लाडली बहना योजना’ और कर्नाटक की ‘गृह लक्ष्मी योजना’ जैसी योजनाओं में परिवारों की महिलाओं को प्रतिमाह 1,000 से 1,500 रुपये तक की राशि दी जाती है।
हालांकि, रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि इन नकद हस्तांतरण योजनाओं से राज्यों के बजट पर दबाव बढ़ रहा है। छह ऐसे राज्य हैं जो इन योजनाओं के कारण घाटे में चल रहे हैं। हालांकि, यदि इन योजनाओं पर खर्च को अलग रखा जाए तो अन्य वित्तीय संकेतकों में सुधार देखा जा सकता है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भी राज्य सरकारों को चेतावनी दे चुका है कि महिलाओं, युवाओं और किसानों के लिए सब्सिडी और नकद हस्तांतरण पर बढ़ता खर्च उत्पादक निवेश को कम कर सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि महिला कल्याण योजनाओं के सकारात्मक सामाजिक प्रभावों के बावजूद, उनके वित्तीय प्रबंधन और दीर्घकालीन बजट स्थिरता पर ध्यान देना आवश्यक है।