इस साल दीपावली पर देशभर में आतिशबाजी का स्तर अब तक के सभी रिकॉर्ड तोड़ गया। पर्यावरणीय एजेंसी एनर्जी एंड क्लाइमेट इंटेलिजेंस यूनिट (ईसीआईयू) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों पर आधारित एक विश्लेषण के मुताबिक, इस बार दीपावली की रात करीब 62,000 टन बारूदी पदार्थ जलाए गए। यह मात्रा पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 13 प्रतिशत अधिक है। विशेषज्ञों ने इसकी तुलना रूस-यूक्रेन युद्ध में प्रतिदिन इस्तेमाल होने वाले विस्फोटकों से की है, जिसके अनुसार भारत में दीपावली की एक रात की आतिशबाजी उस युद्ध के तीन दिनों की बमबारी के बराबर रही।
यह पहली बार है जब किसी अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में भारत के सांस्कृतिक उत्सव को वैश्विक युद्ध के विस्फोटक पैमाने पर मापा गया है। ईसीआईयू की रिपोर्ट इसे "उत्सव और विनाश के बीच की महीन रेखा" के रूप में देखती है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) के डाटा के आधार पर दीपावली में पटाखों में प्रयुक्त बारूद की कुल मात्रा 61,500 से 63,000 टन के बीच रही। दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, चेन्नई और जयपुर सहित 12 बड़े शहरों को शामिल करते हुए किए गए सर्वे में यह औसत आंकड़ा निकाला गया है। वहीं, राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के शुरुआती अनुमानों में यह मात्रा करीब 59,000 टन बताई गई।
रिपोर्ट के अनुसार, इन आंकड़ों की अंतिम पुष्टि नवंबर 2025 में की जाएगी।
दीपावली बनाम युद्ध: बारूद और प्रदूषण का तुलनात्मक अध्ययन
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई) और रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टिट्यूट (आरयूएसआई) के अनुसार रूस-यूक्रेन युद्ध में प्रतिदिन औसतन 20,000 से 21,000 टन विस्फोटक सामग्री का उपयोग होता है। इसके आधार पर अनुमान लगाया गया कि दीपावली की एक रात की आतिशबाजी तीन दिन (लगभग 72 घंटे) की युद्धक गतिविधियों के बराबर रही।
ईसीआईयू के वैज्ञानिकों का कहना है कि रासायनिक दृष्टि से युद्धक विस्फोट और आतिशबाजी दोनों में कई समान तत्व पाए जाते हैं। दोनों ही उच्च तापमान, धात्विक मिश्रण और जहरीली गैसों का उत्सर्जन करते हैं। दीपावली के पटाखे औसतन 1,400 डिग्री सेल्सियस तापमान उत्पन्न करते हैं, जबकि युद्धक बमों से 2,800 डिग्री सेल्सियस तक तापमान दर्ज होता है। इस वर्ष दीपावली की रात वातावरण में लगभग 4.2 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित हुई, जो युद्ध के दौरान औसत 1.9 लाख टन प्रतिदिन उत्सर्जन से कई गुना अधिक है।
48 घंटे तक बना रहा प्रदूषण का असर
नीरी की रिपोर्ट के मुताबिक, दीपावली के बाद वातावरण में फैला धुआं औसतन 36 से 48 घंटे तक बना रहता है। दिल्ली-एनसीआर, कानपुर और जयपुर जैसे घनी आबादी वाले इलाकों में यह प्रभाव तीन दिन तक महसूस किया गया। इस दौरान हवा में मौजूद सूक्ष्म कण (PM 2.5, PM 10), सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड नमी के साथ मिलकर घना स्मॉग बनाते हैं, जिससे वायु गुणवत्ता गंभीर स्तर पर पहुंच जाती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि दिवाली के बाद एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) को सामान्य स्तर पर लौटने में कम से कम दो दिन का समय लगता है।