नई दिल्ली। चुनाव आयोग ने रविवार को नेशनल मीडिया सेंटर में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर विपक्ष के आरोपों पर जवाब दिया। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि संविधान हर 18 वर्ष से ऊपर के नागरिक को मतदाता बनने और मतदान करने का अधिकार देता है। आयोग किसी भी राजनीतिक दल के प्रति पक्षपाती नहीं हो सकता। सभी दल आयोग के लिए समान हैं और संस्था अपने संवैधानिक दायित्व से पीछे नहीं हटेगी।
बिहार से शुरू हुआ विशेष पुनरीक्षण
ज्ञानेश कुमार ने बताया कि पिछले 20 वर्षों से राजनीतिक दल मतदाता सूची में खामियों को दूर करने की मांग कर रहे थे। इसी के तहत बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की शुरुआत की गई। इस प्रक्रिया में 1.6 लाख बूथ लेवल एजेंट (BLA), बूथ स्तरीय अधिकारी और दलों के प्रतिनिधि मिलकर एक मसौदा सूची तैयार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब सूची बनाई गई तो हर चरण में सभी दलों के एजेंटों से हस्ताक्षर लेकर सत्यापित कराया गया।
आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल अनुचित
सीईसी ने कहा कि इतनी पारदर्शी प्रक्रिया के बावजूद “वोट चोरी” जैसे शब्दों का इस्तेमाल जनता को गुमराह करने के बराबर है और यह संविधान का अपमान है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सभी राजनीतिक दलों और मतदाताओं को अभी भी 15 दिन का समय दिया गया है ताकि त्रुटियों को सुधारा जा सके। आयोग के अनुसार बिहार के सात करोड़ मतदाता इस प्रक्रिया में सहयोग कर रहे हैं, इसलिए न तो आयोग की और न ही मतदाताओं की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का हवाला
मशीन-पठनीय मतदाता सूची को लेकर उठे विवाद पर सीईसी ने कहा कि 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे निजता का उल्लंघन माना था। इसलिए चुनाव आयोग केवल खोज योग्य (searchable) मतदाता सूची उपलब्ध कराता है, जिसे EPIC नंबर से देखा और डाउनलोड किया जा सकता है। मशीन-पठनीय सूची अब प्रतिबंधित है।
विपक्ष पर साधा निशाना
ज्ञानेश कुमार ने कहा कि चुनाव नतीजों के बाद 45 दिन तक राजनीतिक दलों को अदालत में याचिका दायर करने का अधिकार होता है। अगर उस दौरान कोई गड़बड़ी सामने नहीं आती, तो बाद में बेबुनियाद आरोप लगाना जनता को गुमराह करने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि कुछ दल जानबूझकर तथ्यों को नजरअंदाज कर भ्रम फैला रहे हैं। चुनाव आयोग बिना किसी दबाव के हर नागरिक—गरीब, अमीर, महिला, युवा और बुजुर्ग—के साथ खड़ा है और लोकतंत्र की रक्षा करता रहेगा।