संविधान दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि भारत में कानून के शासन और संविधान की मर्यादा को मजबूत रखने में बार का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित इस समारोह में उन्होंने कानूनी पेशे से जुड़े लोगों को न्याय प्रणाली की रीढ़ बताते हुए कहा कि कमजोर और हाशिये पर रहने वाले लोगों तक न्याय पहुंचाने में भी बार की जिम्मेदारी सबसे बड़ी है।
“अदालतें संविधान की प्रहरी, बार उनके मार्गदर्शक”
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि संविधान दिवस केवल उत्सव नहीं, बल्कि यह अवसर है कि देश अपने मूल संकल्प को याद करे। उन्होंने कहा, “अगर न्यायालयों को संविधान का रक्षक माना जाता है, तो बार के सदस्य वह दीपक हैं जो हमारी राह रोशन करते हैं। वे हमें हमारे दायित्व निष्पक्षता और विश्वास के साथ पूरा करने में मदद करते हैं।”
जस्टिस सूर्यकांत ने न्याय व्यवस्था के उन ‘अदृश्य पीड़ितों’ का भी उल्लेख किया, जिनकी आवाज अक्सर व्यवस्था तक नहीं पहुंच पाती। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों तक न्याय की रोशनी पहुंचाने में बार की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बार न केवल संवैधानिक मामलों में अदालतों की सहायता करे बल्कि संविधान की मूल भावना—विशेषकर कमजोर वर्गों की मदद और नीति-निर्देशक तत्वों में निहित संकल्प—को वास्तविकता में बदलने की दिशा में कदम उठाए।
“सर्वोच्च सिर्फ संविधान”
कार्यक्रम में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी संबोधन किया। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान की खूबसूरती इसकी तीनों संस्थाओं—न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका—के बीच स्वतंत्रता और संतुलन दोनों को बनाए रखने में है। उन्होंने कहा, “अगर कार्यपालिका संविधान के दायरे से बाहर जाती है तो न्यायपालिका हस्तक्षेप करती है, लेकिन अंततः सर्वोच्च कोई संस्था नहीं, बल्कि संविधान स्वयं है।”
संविधान दिवस का महत्व
26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में 2015 से मनाया जा रहा है। 1949 में इसी दिन संविधान सभा ने भारतीय संविधान को अंगीकृत किया था। इससे पहले इस दिन को ‘कानून दिवस’ के रूप में मनाया जाता था।