सुप्रीम कोर्ट में दायर एक रिट याचिका में बॉम्बे हाई कोर्ट की नई कोल्हापुर सर्किट बेंच की स्थापना को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता ने राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 की धारा 51(3) के तहत जारी 1 अगस्त 2025 की अधिसूचना को गंभीर खामियों और पारदर्शिता की कमी वाला बताया। अधिसूचना के अनुसार, कोल्हापुर को अतिरिक्त स्थान के रूप में नियुक्त किया गया है, जहां हाई कोर्ट के न्यायाधीश और खंडपीठ 18 अगस्त 2025 से बैठेंगे।

याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह निर्णय न्यायिक उदाहरणों और जसवंत सिंह आयोग द्वारा निर्धारित मानदंडों का पालन नहीं करता। उनका कहना है कि इस प्रक्रिया में उचित पारदर्शिता और कानूनी मापदंडों का पालन नहीं किया गया।

गोवा बाघ अभयारण्य का प्रस्ताव

एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति ने प्रस्तावित गोवा बाघ अभयारण्य के पहले चरण में कोर इलाके से सटे कम आबादी वाले संरक्षित क्षेत्रों को शामिल करने की सिफारिश की है। समिति ने 21 नवंबर को अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश की।

समिति ने यह भी कहा कि भगवान महावीर वन्यजीव अभयारण्य और महादेई वन्यजीव अभयारण्य के दक्षिणी हिस्से को पहले चरण में शामिल नहीं किया जाएगा। समिति के दो सदस्य, चंद्र प्रकाश गोयल और सुनील लिमये ने एनजीओ गोवा फाउंडेशन समेत सभी हितधारकों से मुलाकात कर उनका दृष्टिकोण लिया।

एनजीओ द्वारा हाई कोर्ट में दायर जनहित याचिका में राज्य सरकार से अनुरोध किया गया था कि कुछ क्षेत्रों को बाघ अभयारण्य घोषित किया जाए। हाई कोर्ट ने इसे मंजूरी दी, लेकिन गोवा सरकार ने बाद में इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

सुप्रीम कोर्ट की समिति ने कहा कि राज्य के वे संरक्षित क्षेत्र जो काली बाघ अभयारण्य के कोर क्षेत्र से सटे हैं और जहां कम आबादी है, उन्हें प्रस्तावित गोवा बाघ अभयारण्य के पहले चरण में शामिल करने पर विचार किया जाना चाहिए।