सनातन परंपरा में छठ पूजा को सूर्य उपासना का सबसे महत्वपूर्ण पर्व माना गया है। यह पर्व प्रकृति, जल, वायु और सूर्य देव के प्रति आस्था और कृतज्ञता का प्रतीक है। आज से चार दिवसीय छठ महापर्व की शुरुआत हो चुकी है, जिसका शुभारंभ नहाय-खाय के साथ हुआ है।

कल यानी 26 अक्टूबर को खरना का आयोजन होगा, जब व्रती दिनभर उपवास रखकर शाम को गुड़-चावल की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करेंगे। इसके बाद 27 अक्टूबर की शाम को श्रद्धालु अस्ताचलगामी सूर्य (डूबते सूर्य) को अर्घ्य अर्पित करेंगे, जबकि 28 अक्टूबर की सुबह उदयमान सूर्य (उगते सूर्य) को अर्घ्य देकर इस महापर्व का समापन होगा।

छठ महापर्व को सूर्य षष्ठी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस दौरान व्रती सूर्य देव और छठी मैया की पूजा कर परिवार की सुख-समृद्धि और आरोग्यता की कामना करते हैं। शास्त्रों में वर्णन है कि छठ पूजा के दौरान सूर्य देव के कुछ विशेष मंत्रों के जाप से शुभ फल प्राप्त होते हैं।

सूर्य मंत्र
“नमः सूर्याय शान्ताय सर्वरोग निवारिणे, आयुरारोग्य मैस्वैर्यं देहि देव जगत्पते।”
इस मंत्र के जाप से जीवन में ऊर्जा, दीर्घायु और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

सूर्य गायत्री मंत्र
“ॐ भास्कराय विद्महे महादुत्याधिकराय धीमहि तन्नो आदित्यः प्रचोदयात्।”
यह मंत्र मन और शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।

सूर्य बीज मंत्र
“ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः।”
इस मंत्र के जाप से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है और नेत्र संबंधी दोषों का निवारण होता है।

आदित्य हृदय स्तोत्र
“आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।”
इस स्तोत्र का पाठ करने से आत्मविश्वास बढ़ता है और सफलता के मार्ग प्रशस्त होते हैं।

छठ पर्व न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह अनुशासन, संयम और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का प्रतीक भी है।