नई दिल्ली। कांग्रेस ने अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया बयान को लेकर केंद्र सरकार पर तीखा प्रहार किया है। ट्रंप ने एक इंटरव्यू में दावा किया था कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित संघर्ष को "व्यापार और शुल्क नीति" के ज़रिए रोका था। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस ने कहा कि अमेरिका के साथ होने वाला संभावित व्यापार समझौता अब भारत के लिए “दर्दनाक अनुभव” साबित हो रहा है।

कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “कभी कहा गया था कि भारत नवंबर 2025 में क्वाड (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत का समूह) शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा, लेकिन अब वह नहीं हो रहा है।” उन्होंने आगे कहा, “अमेरिका के साथ पहला बड़ा व्यापार समझौता करने की बात कही गई थी, लेकिन अब वह समझौता भारत के लिए कठिनाई बन गया है। अमेरिका को निर्यात घट रहे हैं और भारत में रोजगार के अवसर भी प्रभावित हुए हैं।”

रमेश ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप पहले ही 50 से अधिक बार दावा कर चुके हैं कि उन्होंने “ऑपरेशन सिंदूर” को रोकने में भूमिका निभाई थी। उन्होंने आरोप लगाया कि उस समय की घोषणा वॉशिंगटन से हुई, जबकि भारत को इसकी जानकारी बाद में मिली। कांग्रेस नेता ने ट्रंप का वह वीडियो भी साझा किया जिसमें उन्होंने कहा कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित “परमाणु युद्ध” को व्यापारिक दबाव से रोका था।

क्या कहा था ट्रंप ने इंटरव्यू में
अमेरिकी टीवी नेटवर्क को दिए साक्षात्कार में ट्रंप ने कहा, “अगर व्यापार और शुल्क नीति नहीं होती, तो मैं भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता नहीं करा पाता। दोनों देशों के बीच परमाणु युद्ध की स्थिति थी। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने भी कहा था कि अगर ट्रंप ने हस्तक्षेप नहीं किया होता, तो लाखों लोग मारे जाते।”
उन्होंने दावा किया कि उन्होंने दोनों देशों को चेताया था कि यदि शांति नहीं बनी, तो वे अमेरिका के साथ व्यापार नहीं कर पाएंगे — और इस चेतावनी के बाद युद्ध टल गया।

भारत का रुख साफ
गौरतलब है कि भारत ने ट्रंप के इन दावों को पहले भी खारिज किया है। भारत का हमेशा से यह स्पष्ट रुख रहा है कि पाकिस्तान के साथ संघर्ष विराम की सहमति दोनों देशों के सैन्य प्रमुखों — यानी डीजीएमओ स्तर की बातचीत — से हुई थी, किसी तीसरे देश के दखल से नहीं।

यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर व्यापार, रणनीति और रक्षा सहयोग पर नई दिशा तय करने की कोशिशें चल रही हैं।