कर्नाटक सरकार ने केंद्रीय मंत्री एचडी कुमारस्वामी और भाजपा के तीन पूर्व मंत्रियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी के लिए राज्यपाल थावरचंद गहलोत को ‘सलाह’ देने का फैसला किया है। इनमें खनन कारोबारी जी. जनार्दन रेड्डी भी शामिल हैं। यह फैसला तब लिया गया है, जब राज्यपाल ने 16 अगस्त को मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) भूमि आवंटन मामले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दी।
कानून और संसदीय मामलों के मंत्री एच.के.पाटिल ने बताया कि मंत्रिमंडल ने संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल को सलाह देने का फैसला लिया है, ताकि लंबित मामलों का जल्दी निपटारा किया जा सके और न्यायिक प्रक्रिया सुगम हो सके। उन्होंने कहा, हमने राज्यपाल को सलाह देने की मंजूरी दे दी है। यह सलाह जल्द ही राज्यपाल को भेजी जाएगी।
पाटिल ने आगे यह भी बताया कि जिन मामलों के लिए सलाह को मंजूरी दी गई है, उनमें से दो में (जनार्दन रेड्डी और एचडी कुमारस्वामी) आरोपपत्र दाखिल किया जा चुका है। उनसे जब पूछा गया कि क्या राज्यपाल मंत्रिमंडल की सलाह को अस्वीकार कर सकते हैं, तो पाटिल ने कहा, हमें लगता है कि राज्यपाल को हमारी सलाह माननी चाहिएए। उनके विवेकाधिकार सीमित हैं। हमें भरोसा है कि वह अपने विवेकाधिकार का सही तरीके से उपयोग करेंगे।
राज्यपाल ने 16 अगस्त को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने को मंजूरी दी थी। यह मंजूरी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17 ए और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 218 के तहत दी गई है। यह कार्रवाई प्रदीप कुमार एस.पी., टी.जे. अब्राहम स्नेहमयी कृष्णा की याचिकाओं में उल्लिखित आरोपों के आधार पर की गई है।
पाटिल ने कहा कि राज्यपाल के पास कई याचिकाएं लंबित हैं। इनमें से कुछ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत जांच एजेंसियों की ओर से दायर की गई याचिकाएं भी शामिल हैं। इनमें से कुछ मामलों में आरोपपत्र भी दाखिल किए गए हैं। उन्होंने कहा, मंजूरी की मांग भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 197 और 218 के तहत की गई है। कुछ याचिकाएं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 18 ए के तहत भी हैं।
2018 के विधानसभा चुनावों से पहले कुमारस्वामी ने कहा था, “मैं किंग बनूंगा, किंगमेकर नहीं” और उनके शब्द भविष्यसूचक साबित हुए क्योंकि वोक्कालिगा नेता दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, जबकि उनकी पार्टी जेडीएस चुनावों में तीसरे स्थान पर रही थी। यह कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार थी।लेकिन उनका कार्यकाल अल्पकालिक रहा क्योंकि उनके नेतृत्व वाली अस्थिर गठबंधन सरकार 13 महीने सत्ता में रहने के बाद गिर गई। कुमारस्वामी ने इससे पहले 2006 में जेडीएस-बीजेपी सरकार के प्रमुख के रूप में 20 महीने तक सीएम के रूप में कार्य किया था।
एच.डी. कुमारस्वामी 2018 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने थे, और उनका मुख्यमंत्री बनना एक राजनीतिक घटनाक्रम था जिसमें कई दलों और उनकी जटिल गठबंधन की भूमिका रही। कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन उसे पूर्ण बहुमत नहीं मिला। भाजपा को 224 सदस्यीय विधानसभा में 104 सीटें मिलीं।
गठबंधन की राजनीति
कर्नाटक विधानसभा में बहुमत हासिल करने के लिए किसी पार्टी को 113 सीटें चाहिए थीं। भाजपा को बहुमत नहीं मिला, जिससे गठबंधन की राजनीति का एक नया दौर शुरू हुआ। कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) जद (एस) ने मिलकर एक गठबंधन सरकार बनाने की योजना बनाई। कांग्रेस को 80 सीटें और जेडीएस को 37 सीटें मिलीं थीं। इसके बावजूद कुमारस्वामी तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने थे।
आय से अधिक संपत्ति केस में लोकायुक्त के सामने पेश हुए शिवकुमार
दूसरी तरफ कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले की जांच के सिलसिले में गुरुवार को लोकायुक्त पुलिस के समक्ष पेश हुए। पेशी के बाद शिवकुमार ने कहा, ‘‘लोकायुक्त ने कल समन जारी किया था, मैं उपस्थित नहीं हो सका, क्योंकि मैं अलमट्टी के दौरे पर था। इसलिए मैंने आज पेश होने के लिए अनुरोध किया था और उन्होंने मुझे आज का समय दिया। लगभग तीन घंटे तक उन्होंने मुझसे पूछताछ की। मैंने उन्हें जवाब दे दिए हैं। उन्होंने और दस्तावेज मांगे हैं, मैं उन्हें जमा कर दूंगा।’’
उन्होंने कहा कि ‘‘तथ्यों का अध्ययन करने के बाद’’, लोकायुक्त एक बार फिर उन्हें पेश होने का नोटिस जारी करेंगे। शिवकुमार ने कहा, ‘‘एक बात जरूर है कि सीबीआई उनसे (लोकायुक्त से) बेहतर है। उन्होंने मुझसे अलग-अलग चीजों पर कई सारे सवाल पूछे।
सीबीआई ने अभी तक मुझसे कुछ नहीं पूछा है, उसने मुझे अभी तक नहीं बुलाया है। लेकिन उन्होंने (लोकायुक्त) मुझे बुलाया है और मुझे परेशान कर रहे हैं।’’ राज्य सरकार द्वारा मामले को सीबीआई से लोकायुक्त को सौंपने के बारे में पूछे जाने पर शिवकुमार ने कहा कि लोकायुक्त पिछले छह माह से मामले की जांच कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘सीबीआई को जांच रोक देनी चाहिए थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। वे मेरे सभी लोगों को परेशान कर रहे हैं। उसने मुझे अभी तक तलब नहीं किया है, लेकिन वे मेरे कई मित्रों और रिश्तेदारों को परेशान कर रहे हैं। अब इन लोगों (लोकायुक्त) ने भी उसी तरह से काम करना शुरू कर दिया है।’’ गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में शिवकुमार के खिलाफ दर्ज सीबीआई की प्राथमिकी को चुनौती देने वाली उनकी याचिका को 15 जुलाई को खारिज कर दिया था।