कर्नाटक की राजनीति में इन दिनों मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर खींचतान की खबरें लगातार सुर्ख़ियों में हैं। पार्टी के अंदर यह चर्चा चल रही है कि जब कांग्रेस सरकार बनी थी, तो ढाई साल तक सिद्धारमैया और शेष ढाई साल डी.के. शिवकुमार सत्ता संभालेंगे। हालांकि, इसका कोई आधिकारिक एलान नहीं हुआ था, लेकिन शिवकुमार गुट के कई विधायक इस योजना को मान रहे थे। अब सिद्धारमैया के ढाई साल पूरे होने के बाद अंदरूनी खींचतान तेज़ हो गई है।

कुछ दिन पहले शिवकुमार गुट के कई विधायक दिल्ली में पार्टी के आला कमान से भी मिले। सूत्रों के अनुसार, उन्हें मीडिया में बेमतलब बयान देने से रोकने की चेतावनी दी गई। उस समय कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि पार्टी में सब ठीक चल रहा है। डी.के. शिवकुमार ने भी चुप्पी साधे रखी थी, लेकिन अब उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया दी है।

शिवकुमार ने कहा कि वे जल्द ही दिल्ली जाएंगे और पार्टी के निर्देशों का पालन करेंगे। उन्होंने कांग्रेस को अपना "मंदिर" बताते हुए पार्टी के लंबा इतिहास और आलाकमान की मार्गदर्शक भूमिका का उल्लेख किया। शिवकुमार ने यह भी स्पष्ट किया कि वे किसी पद की मांग नहीं कर रहे हैं और पार्टी जो निर्णय करेगी, उसे मान्य करेंगे। उनका कहना है कि उनकी निष्ठा कांग्रेस के साथ पूर्ण है और संगठन की एकता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

मंत्री ईश्वर खंड्रे ने कहा कि नेतृत्व को लेकर कोई सार्वजनिक बयान नहीं देना चाहिए और सरकार का प्रशासन सामान्य रूप से चलता रहेगा। वहीं, मंत्री के.एच. मुनियप्पा ने सुझाव दिया कि पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और सोनिया गांधी को मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम को बुलाकर स्थिति को सुलझाना चाहिए, जिससे सरकार की स्थिरता और कार्यकुशलता बनी रहे।

कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने विपक्ष के सवालों को खारिज करते हुए कहा कि राज्य में चुनी हुई सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर रही है और पार्टी अपने आंतरिक मामलों को खुद सुलझा लेगी। उनका कहना है कि जनता का भरोसा कांग्रेस के साथ है और विपक्ष की आलोचना सरकार की स्थिरता पर असर नहीं डाल सकती।