सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पुलिस हिरासत में हुई हिंसा और मौतों को देश की न्यायव्यवस्था पर एक गंभीर धब्बे के रूप में बताया और कहा कि अब ऐसी घटनाओं को किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
मामले का विवरण
अदालत ने स्वत: संज्ञान लेते हुए देशभर के पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की कार्यप्रणाली पर सुनवाई की। राजस्थान में पिछले आठ महीनों में 11 हिरासत मौतों की जानकारी को लेकर बेंच ने गहरी चिंता व्यक्त की। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की बेंच ने कहा, “हिरासत में मौतें सिस्टम पर दाग हैं। देश अब इसे सहन नहीं करेगा।”
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि हिरासत में किसी की मौत को कोई भी जायज़ नहीं ठहरा सकता। अदालत ने नाराजगी जताते हुए केंद्र सरकार से पूछा कि अब तक अनुपालन रिपोर्ट क्यों नहीं दाखिल की गई। इसके जवाब में केंद्र ने तीन हफ्ते के भीतर रिपोर्ट जमा करने का आश्वासन दिया।
सीसीटीवी आदेश और धीमी प्रगति
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 और 2020 में आदेश दिया था कि सभी पुलिस थानों और केंद्रीय एजेंसियों जैसे सीबीआई, ईडी, एनआईए में फुल कवरेज वाले सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं। हालांकि, केवल 11 राज्यों ने ही अब तक रिपोर्ट दाखिल की है और कई राज्य और केंद्र के विभाग अभी भी पिछड़े हैं। तीन केंद्रीय एजेंसियों में सीसीटीवी लग चुके हैं, लेकिन बाकी एजेंसियों में काम अधूरा है।
मध्य प्रदेश की सराहना
अदालत ने मध्य प्रदेश के काम की सराहना की, जहां हर पुलिस स्टेशन और चौकी को डिस्ट्रिक्ट कंट्रोल रूम से लाइव जोड़ा गया है। बेंच ने इसे उदाहरणीय बताया।
अंतरराष्ट्रीय मॉडल और ‘ओपन एयर जेल’ पर चर्चा
सुनवाई के दौरान अमेरिका के मॉडल का भी जिक्र हुआ, जहां सीसीटीवी की लाइव स्ट्रीमिंग होती है और कुछ निजी जेलें संचालित की जाती हैं। सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि सीएसआर फंड से प्राइवेट जेल बनाने का सुझाव भी आया था। कोर्ट ने कहा कि वह पहले से ही ओपन एयर प्रिजन मॉडल के मामले पर विचार कर रहा है, जिससे जेलों में भीड़ और हिंसा कम की जा सकती है।
सख्त आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अब तक रिपोर्ट नहीं दी है, उन्हें तीन हफ्ते के भीतर अपनी रिपोर्ट हर हाल में जमा करनी होगी। यदि अनुपालन नहीं हुआ, तो संबंधित गृह विभाग के प्रमुख सचिव और केंद्रीय एजेंसियों के निदेशक को कोर्ट में पेश होना पड़ेगा। अगली सुनवाई 16 दिसंबर को होगी।