नई दिल्ली: कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भारत की ओर से मिस्र में आयोजित शर्म अल-शेख शांति सम्मेलन में विदेश राज्य मंत्री किरती वर्धन सिंह को भेजे जाने के निर्णय पर आपत्ति जताई है। इस सम्मेलन में 20 देशों के शीर्ष नेता शामिल होंगे, जिनमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर और फलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास भी मौजूद रहेंगे।
थरूर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निमंत्रण मिलने के बावजूद उनका इसमें हिस्सा न लेना अन्य विश्व नेताओं के रुख से अलग दिखाई देता है। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “क्या यह रणनीतिक संयम है या एक खोया हुआ अवसर?”
सम्मेलन का उद्देश्य और पृष्ठभूमि
यह शांति सम्मेलन मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी की मेजबानी में रेड सी के शहर शर्म अल-शेख में हो रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य इजरायल-गाजा संघर्ष को समाप्त करने और स्थायी शांति का रास्ता तलाशने पर केंद्रित है। सम्मेलन की सह-अध्यक्षता ट्रम्प और अल-सिसी करेंगे।
सम्मेलन से पहले हमास ने 20 बंधकों को रिहा किया, जिनमें सात लोग रेड क्रॉस को सौंपे गए और 13 अन्य को अलग खेप में छोड़ा गया। वहीं, इजरायल ने भी वेस्ट बैंक की जेलों से कई फलिस्तीनी बंधकों को रिहा किया।
शशि थरूर के बयान का राजनीतिक असर
थरूर ने स्पष्ट किया कि उनकी चिंता किर्ति वर्धन सिंह की क्षमता पर नहीं, बल्कि भारत के प्रतिनिधित्व के स्तर को लेकर है। उनके इस बयान से कांग्रेस पार्टी और उनके बीच पिछले कुछ समय से चल रही असहमति पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है।
थरूर ने कहा कि उनका हालिया बयान प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व की प्रशंसा का हिस्सा है, जो पार्टी के भीतर कुछ असहजता पैदा कर रहा है। उन्होंने यह भी दोहराया कि वे भाजपा में शामिल नहीं हो रहे हैं। थरूर ने कहा, “मेरी पीएम मोदी की प्रशंसा का मतलब यह नहीं कि मैं भाजपा में शामिल होने जा रहा हूं।”
थरूर 2021 से ही कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं के समूह G-23 से जुड़े हैं और पार्टी की विचारधारा के प्रति अपनी वफादारी भी जताते रहे हैं।