केंद्र ने बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि एक विशेषज्ञ समिति ने मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन) क्षेत्र में प्रस्तावित सुधारों पर अपनी रिपोर्ट कानून मंत्रालय को सौंप दी है। इस समिति की अध्यक्षता पूर्व विधि सचिव टीके विश्वनाथन ने की।सरकार की ओर से शीर्ष अदालत में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि पेश हुए। उन्होंने अदालत को बताया कि केंद्र सरकार रिपोर्ट पर अभी तक अंतिम विचार नहीं किया है। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि वह (केंद्र) रिपोर्ट को संबंधित पक्षों के साथ साझा करे।
एक मार्च तक सभी पक्षों को सौंपी जाए रिपोर्ट
पीठ ने कहा, “सरकार रिपोर्ट पर फैसला करेगी। लेकिन आप इसे सभी पक्षों को भेजें।” पीठ ने कहा कि संबंधित पक्षों को एक मार्च तक रिपोर्ट सौंपी जाए। पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे।
किसी अन्य को मध्यस्थ नहीं बना सकता अयोग्य व्यक्ति
शीर्ष अदालत ने 2017 और 2020 में कहा था कि अगर कोई व्यक्ति मध्यस्थ बनने के योग्य नहीं है, तो वह किसी अन्य व्यक्ति को मध्यस्थ के रूप में नामित नहीं कर सकता है। हालांकि, 2020 में ही एक अन्य मामले में उच्चतम न्यायालय ने ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति की अनुमति दी थी, जो मध्यस्थ बनने के लिए अयोग्य था। शीर्ष अदालत अब इस मुद्दे पर फैसला सुना रही है। सीजेआई ने 26 जून, 2023 को इसकी जांच के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया था।
विश्वनाथन की अगुवाई में गठित की गई थी समिति
सरकार ने अदालतों पर बोझ कम करने के मकसद से मध्यस्थता एवं सुलह कानून में सुधारों की सिफारिश करने के लिए विशेषज्ञ समिति गठित की थी। इस समिति की अगुवाई पूर्व विधि सचिव टीके विश्वनाथन ने की थी। सरकार ने भारत को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का केंद्र बनाने की कोशिशों के बीच इस समिति का गठन किया था।
विशेषज्ञ समिति में इन विभागों के अधिकारी शामिल
वेंकटरमणि कानून मंत्रालय में कानूनी मामलों के विभाग की ओर से गठित विशेषज्ञ समिति में भी शामिल हैं।कानून मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव राजीव मणि, कुछ वरिष्ठ वकील, निजी कानून फर्मों के प्रतिनिधि, विधायी विभाग, नीति आयोग, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई), रेलवे और केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) के अधिकारी इसके अन्य सदस्य हैं।