सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई ने आज एक साक्षात्कार में न्यायपालिका और लोकतंत्र से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि न्यायिक सक्रियता को कभी भी न्यायिक आतंकवाद में बदलने की आवश्यकता नहीं है। हमारे संविधान में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलित शक्तियों और अलग-अलग कार्यक्षेत्र की पुष्टि की गई है।

जस्टिस गवई ने न्यायिक एक्टिविज्म पर अपनी दृष्टि साझा करते हुए कहा कि कई बार नागरिक अपनी सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के कारण सीधे अदालत का रुख नहीं कर पाते। ऐसे मामलों में, अगर न्यायपालिका उन्हें अदालत का दरवाजा खोलने की अनुमति देती है, तो यह अनुचित नहीं माना जा सकता।

उन्होंने आगे यह भी बताया कि न्यायपालिका तक पहुंच के विकल्प से समाज के अंतिम नागरिक को आर्थिक और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में मदद मिलती है, जिससे देश में न्याय की वास्तविक भावना जीवित रहती है।