सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंगलवार को 3-2 के फैसले में समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से मान्यता देने से इनकार करने के बाद मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आईं। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने कहा कि ऐसा कानून बनाना संसद का क्षेत्र है और अदालतें केवल उनकी व्याख्या कर सकती हैं। इसमें यह भी माना गया कि गैर-विषमलैंगिक जोड़ों को संयुक्त रूप से बच्चा गोद लेने का अधिकार नहीं दिया जा सकता है। सीजेआई के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि समलैंगिक समुदाय के साथ भेदभाव न किया जाए।
फैसला सुनाते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि समलैंगिक होना एक प्राकृतिक घटना है और यह सदियों से जाना जाता है और रेखांकित किया कि यह न तो शहरी है और न ही अभिजात्य वर्ग है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदीश अग्रवाला ने कहा कि वह कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं। अग्रवाल ने एएनआई को बताया कि मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करता हूं जहां उन्होंने समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं दी है। कुछ लोगों ने भारतीय व्यवस्था को ख़राब करने की कोशिश की, लेकिन मुझे ख़ुशी है कि अदालत ने भारत सरकार के संस्करण को स्वीकार कर लिया है।
इस मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक कार्यकर्ता अंजलि गोपालन ने कहा कि समुदाय अपने अधिकारों के लिए लड़ना जारी रखेगा। उन्होंने एएनआई को बताया कि गोद लेने के संबंध में भी कुछ नहीं किया गया। सीजेआई ने गोद लेने के संबंध में जो कहा वह बहुत अच्छा था लेकिन यह निराशाजनक है कि अन्य न्यायाधीश सहमत नहीं हुए। यह लोकतंत्र है लेकिन हम अपने ही नागरिकों को बुनियादी अधिकारों से वंचित कर रहे हैं। वकील करुणा नंदी ने कहा कि आज कुछ ऐसे अवसर थे जिनके बारे में उनका मानना है कि उन्हें विधायकों और केंद्र सरकार के पास भेज दिया गया।