पूर्व इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने कहा कि अगले 10 वर्षों में अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का 10 प्रतिशत (50 बिलियन अमेरिकी डॉलर) हासिल करने का भारत का महत्वाकांक्षी लक्ष्य आसान काम नहीं है, क्योंकि इस क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करना बहुत जटिल है और यह वर्षों के अनुभव से आता है।
'रॉकेट और उससे जुड़ी इंजीनियरिंग की जटिलताएं पहले जैसी ही'
हैदराबाद में शुक्रवार को इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी) के स्नातक समारोह के दौरान उन्होंने कहा कि हाल ही में किए गए अध्ययन से पता चलता है कि पिछले 60 वर्षों के दौरान इसरो पर खर्च किए गए प्रत्येक रुपये पर 2.54 रुपये का रिटर्न मिला है। इससे हमें उम्मीद है कि भारत में भी एक बहुत ही जीवंत अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था बनाना संभव है। उन्होंने आगे कहा कि रॉकेट और उससे जुड़ी इंजीनियरिंग की जटिलताएं पहले जैसी ही हैं और निवेश करने और अंतरिक्ष कार्यक्रम बनाने की चाहत रखने वाली कंपनियों पर विफलता की संभावना अभी भी मंडरा रही है।
उन्होंने कहा कि भारत में फिलहाल अंतरिक्ष क्षेत्र में 250 स्टार्टअप काम कर रहे हैं। उनके अनुसार, 60-70 प्रतिशत राजस्व अंतरिक्ष अनुप्रयोग क्षेत्र से आता है, लगभग 20 प्रतिशत उपग्रहों के निर्माण और संचालन से और लगभग 15 प्रतिशत रॉकेट और आवश्यक प्रक्षेपण अवसंरचना के निर्माण से आता है। इसलिए इस क्षेत्र में सबसे अधिक निवेश की आवश्यकता है।
वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत का केवल दो प्रतिशत योगदान
उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में अंतरिक्ष क्षेत्र में नाटकीय रूप से बदलाव आया है, मुख्य रूप से अमेरिका और चीनी अंतरिक्ष कार्यक्रमों में हो रही गतिविधियों से और पिछले कुछ वर्षों में प्रक्षेपणों की संख्या में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है। सोमनाथ ने कहा कि भारत वर्तमान में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था (500 अरब डॉलर) में केवल दो प्रतिशत का योगदान देता है। उन्होंने कहा, हमने अपने लिए जो लक्ष्य तय किए हैं, उनमें से एक यह है कि हमें अगले 10 वर्षों में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के 10 प्रतिशत के बराबर, यानी 45 से 50 अरब डॉलर के बराबर पहुंचना होगा।