सिख दंगों की बरसी पर केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने सोशल मीडिया पर एक भावनात्मक पोस्ट साझा करते हुए कांग्रेस पार्टी पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने 1984 के सिख विरोधी दंगों को स्वतंत्र भारत के इतिहास का “सबसे काला अध्याय” करार दिया और कहा कि उस समय सरकारी संस्थाओं का खुला दुरुपयोग हुआ था।

पुरी ने लिखा कि “उस दौर में जिन संस्थाओं पर जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी, उन्होंने कांग्रेस नेताओं के आगे आत्मसमर्पण कर दिया। निर्दोष सिख पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की बेरहमी से हत्या की गई, जबकि उनकी संपत्तियों और धार्मिक स्थलों को भी लूटा गया।” उन्होंने कहा कि यह सब इंदिरा गांधी की हत्या का बदला लेने के नाम पर हुआ, लेकिन इसके पीछे राजनीतिक इरादे छिपे थे।

केंद्रीय मंत्री ने नानावटी आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि आयोग के निष्कर्षों में स्पष्ट है कि कई कांग्रेस नेता न केवल हिंसा रोकने में विफल रहे, बल्कि स्वयं भीड़ का नेतृत्व करते देखे गए। पुरी ने लिखा कि “दंगे भड़काने वालों को बचाया गया, और बाद में उन्हें पार्टी टिकट देकर पुरस्कृत भी किया गया। कांग्रेस नेताओं ने भीड़ को ज्वलनशील पदार्थ तक उपलब्ध कराए, जिससे निर्दोष लोगों को जिंदा जलाया गया।”

उन्होंने उस समय की पुलिस और प्रशासनिक भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा, “सरकारी मशीनरी ने सिख समुदाय से मुंह फेर लिया था। मतदाता सूचियों का इस्तेमाल कर सिखों के घरों और संपत्तियों की पहचान की गई। पुलिस और प्रशासन मूकदर्शक बनकर खड़े रहे, जबकि भीड़ सिखों को घरों और गुरुद्वारों से निकालकर जला रही थी। उस दौर में रक्षक ही हत्यारे बन गए थे।”

पुरी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बयान “जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है” को याद करते हुए कहा कि यह वक्तव्य सिखों के नरसंहार को परोक्ष समर्थन देने जैसा था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेताओं को गुरुद्वारों के बाहर हिंसक भीड़ का नेतृत्व करते देखा गया, जबकि कानून-व्यवस्था की संस्थाएं मौन खड़ी रहीं।