नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म और हत्या के एक मामले में मौत की सजा पाए आरोपी को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि पर्याप्त साक्ष्य के बिना जल्दबाजी में दी गई सजा कानून के शासन को कमजोर करती है। यह मामला 2014 में उत्तराखंड के काठगोदाम थाने में दर्ज हुआ था, जिसमें पीड़िता का शव बरामद हुआ था।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी की दोषसिद्धि के लिए परिस्थितियों की पूरी और अटूट श्रृंखला साबित करने में विफल रहा। अदालत ने इस आधार पर सह-अभियुक्त को भी दोषमुक्त करार दिया, जिसे सात साल की सजा सुनाई गई थी।
पीठ ने स्पष्ट किया कि मौत की सजा केवल दुर्लभतम मामलों में ही दी जानी चाहिए, क्योंकि यह अपरिवर्तनीय है। जरा सा भी संदेह होने या ठोस साक्ष्य न मिलने पर मृत्युदंड से बचना चाहिए। यह फैसला उत्तराखंड हाईकोर्ट के 2019 के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनाया गया।