सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में राकेश अस्थाना की 2021 में नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका बंद कर दी. कोर्ट का कहना है कि अस्थाना अब इस पद से सेवानिवृत्त हो गए हैं, जिससे याचिका निरर्थक हो गई है. हालांकि जज सूर्यकांत और जज एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने स्पष्ट किया कि उसने इस मामले में उठे व्यापक कानूनी सवाल पर फैसला नहीं किया है. अर्थात् प्रकाश सिंह और अन्य बनाम भारत संघ के मामले में पुलिस नियुक्तियों पर शीर्ष अदालत द्वारा पहले जारी किए गए दिशा निर्देश दिल्ली के पुलिस आयुक्त के चयन के लिए बाध्यकारी हैं या नहीं.

कोर्ट ने कहा कि यदि भविष्य में ऐसी नियुक्तियों में अनियमितता का कोई मामला सामने आता है तो वह उस पर न्यायिक संज्ञान लेगा. कोर्ट ने कहा ‘हमें उम्मीद है कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा. अगर ऐसा होता है, तो हम संज्ञान लेंगे. अगर हम अभी ऐसा करते हैं तो यह अनावश्यक रूप से कई सम्मानित अधिकारियों के लिए समस्याएं पैदा करेगा’.

सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन ने दायर की थी याचिका

कोर्ट के समक्ष याचिका गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) ने द्वारा दायर की गई थी. एनजीओ ने दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में राकेश अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती दी थी. यह नियुक्ति उनकी सेवानिवृत्ति से चार दिन पहले गुजरात से दिल्ली में अंतर-कैडर स्थानांतरण के बाद की गई थी. संगठन की ओर सीनियर वकील प्रशांत भूषण पैरवी कर रहे थे. सीपीआईएल ने तर्क दिया कि यह प्रकाश सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशानिर्देशों का उल्लंघन है.

साल 2019 में शीर्ष अदालत ने इस मामले में 2006 के फैसले को संशोधित करते हुए स्पष्ट किया कि पुलिस प्रमुख (राज्यों में पुलिस महानिदेशक) के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए अनुशंसित व्यक्तियों के पास उनकी सेवानिवृत्ति से पहले कम से कम छह महीने शेष होने चाहिए. वहीं सीपीआईएल ने दलील दी कि जब अस्थाना की नियुक्ति की गई तो इस दिशा निर्देश का उल्लंघन किया गया.

सीपीआईएल की तरफ से प्रशांत भूषण ने दी दलील

आज मंगलवार को जब मामले की सुनवाई हुई तो कोर्ट ने कहा कि सीपीआईएल की याचिका अब निरर्थक हो सकती है क्योंकि अस्थाना पहले ही अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं. सीपीआईएल की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि याचिका में अभी भी पुलिस नियुक्तियों में कार्यपालिका की पहुंच के बारे में महत्वपूर्ण चिंताएं उठाई गई हैं. उन्होंने कहा कि प्रकाश सिंह का पूरा उद्देश्य पुलिस को राजनेताओं से आज़ादी दिलाना था.’ सीपीआईएल ने तर्क दिया कि इस मामले में निर्धारित सिद्धांत दिल्ली के पुलिस प्रमुख की नियुक्ति पर भी लागू होने चाहिए.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जताई असहमति

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता केंद्र सरकार की ओर से कोर्ट में पेश हुए और सीपीआईएल के तर्क पर असहमती जताई. उन्होंने तर्क दिया कि प्रकाश सिंह का फैसला दिल्ली पुलिस आयुक्त के चयन को नियंत्रित नहीं करता है, उन्होंने कहा कि नियुक्ति सार्वजनिक हित में और कानूनी ढांचे के भीतर की गई थी. भूषण ने इस बात पर प्रतिवाद किया कि स्थापित नियमों को दरकिनार करते हुए राजनीतिक और नौकरशाही समर्थित उम्मीदवारों को वरिष्ठ पुलिस पदों पर नियुक्त किया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि सेवानिवृत्ति से ठीक चार दिन पहले अस्थाना का गुजरात कैडर से एजीएमयूटी (अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश) कैडर में स्थानांतरण मानक प्रक्रिया से अलग था. भूषण ने कहा कि अस्थाना की 2021 की नियुक्ति ने पुलिस नेतृत्व के चयन को नियंत्रित करने वाले मौलिक सिद्धांतों का उल्लंघन किया. उन्होंने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त सहित अन्य नियुक्तियों में भी इसी तरह की कार्रवाइयां देखी गई थीं.

कोर्ट ने कही ये बात

जवाब में कोर्ट ने कहा कि मानक नियुक्ति नियमों से अलग कभी-कभी सार्वजनिक हित में किया जा सकता है. हालांकि, यह निर्धारित करना भी आवश्यक होगा कि क्या ऐसे अपवाद कानूनी रूप से वैध थे, यह जोड़ा गया. कोर्ट ने कहा ‘कोई भी कठोर मानदंड सार्वजनिक हित के लिए हानिकारक हो सकता है. कभी-कभी स्थितियों में, आपको सामान्य नियमों से हटकर सार्वजनिक हित में निर्णय लेने की आवश्यकता हो सकती है. हम यहां केवल समस्या समाधान की कोशिश कर रहे हैं’. इसके बाद कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए इसे बंद कर दिया.