राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने संघ के 100 साल पूरे होने के अवसर पर दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में कई अहम सवालों के जवाब दिए। जब उनसे पूछा गया कि क्या 75 साल की उम्र के बाद राजनीति से सेवानिवृत्त हो जाना चाहिए, तो उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्होंने कभी ऐसा नहीं कहा। भागवत ने बताया कि यह बयान उन्होंने संघ के दिवंगत वरिष्ठ प्रचारक मोरोपंत पिंगले के विचारों का हवाला देते हुए दिया था। उन्होंने कहा कि संघ में किसी भी समय किसी सदस्य से काम कराने का निर्णय संघ करता है और वे संघ के आदेश का पालन करते हैं।
भागवत ने कहा कि संघ में हर व्यक्ति को जो जिम्मेदारी दी जाती है, उसे निभाना होता है, चाहे उसकी उम्र कितनी भी हो। संघ में किसी को यह चुनने का विकल्प नहीं होता कि वह यह करेगा या नहीं। उन्होंने बताया कि संघ में कम से कम दस ऐसे लोग हैं, जो सरसंघचालक बनने के योग्य हैं, लेकिन अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में व्यस्त होने के कारण उन्हें अभी इसमें नहीं लगाया जा सकता।
धार्मिक मुद्दों पर भागवत ने कहा कि हिंदू विचारधारा कभी यह नहीं कहती कि किसी अन्य धर्म को नहीं होना चाहिए। संघ किसी पर भी धार्मिक आधार पर हमला करने में विश्वास नहीं रखता। उन्होंने जोर दिया कि धर्म व्यक्तिगत पसंद का मामला है और इसमें कोई जबरदस्ती या प्रलोभन नहीं होना चाहिए।
जाति व्यवस्था पर उन्होंने कहा कि आरएसएस संविधान द्वारा निर्धारित आरक्षण नीतियों का समर्थन करता है और आवश्यकतानुसार करता रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि पुरानी जाति व्यवस्था अब समाप्त हो चुकी है और इसे पूरी तरह खत्म होना चाहिए। शोषण-मुक्त और समतावादी समाज के लिए मूल्यांकन जरूरी है, ताकि पुरानी व्यवस्था समाप्त होने पर समाज पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
भागवत ने राम मंदिर आंदोलन का समर्थन करने की बात दोहराई, लेकिन काशी-मथुरा पुनरुद्धार जैसे अन्य आंदोलनों में संघ का समर्थन नहीं होगा। हालांकि, स्वयंसेवक व्यक्तिगत रूप से किसी आंदोलन में शामिल हो सकते हैं।
अखंड भारत पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह एक सत्य है और संघ ने हमेशा बंटवारे का विरोध किया। उन्होंने बताया कि उस समय महात्मा गांधी ने भी कहा था कि बंटवारा उनकी लाश पर होगा, और संघ उस समय इसे रोकने में असमर्थ था।