देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने कहा है कि धर्म और स्टेट के बीच संघर्ष को हल करने के लिए आत्ममंथन जरूरी है. धर्म या राज्य के प्रति विश्वास को कभी भी समझौता नहीं करना चाहिए. राज्य और धर्म के बीच संबंध की यह घटना केवल इस्लाम तक सीमित नहीं है. एनएसए ने यह बात वर्ल्ड बुक फेयर में तुर्कियन-अमेरिकन स्कॉलर लेखक अहमत टी. कुरू की किताब ‘Islam Authoritarianism: Underdevelopment- A Global and Historical Comparison’ के हिंदी संस्करण के विमोचन के दौरान कही. यह किताब खुसरो फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित किया गया है.

किताब के विमोचन कार्यक्रम में अपनी बात रखते हुए अजीत डोभाल ने आगे कहा कि हमें अपने दिमाग को बंद नहीं होने देना चाहिए. यदि आप आत्ममंथन नहीं करेंगे तो आप समय और दिशा दोनों खो देंगे. अगर यह बहुत देर से किया गया तो आप पीछे रह जाएंगे. स्टेट और रिलीजन के बीच संबंध की यह घटना केवल इस्लाम तक सीमित नहीं है. हालांकि अब्बासी शासन में राष्ट्र और धर्माचार्यों की भूमिका को लेकर काफी हद तक स्पष्टता थी.

‘समाधान की तलाश में हैं या नहीं यह महत्वपूर्ण है’

उन्होंने कहा कि संघर्ष (धर्म और राज्य के बीच) जारी रहेगा लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि क्या हम समाधान की तलाश में हैं. उदाहरण के लिए, उन्होंने कहा, हिंदू धर्म में, संघर्ष ध्यान और शास्त्रार्थ-विद्वानों और ज्ञानी लोगों के प्रतिस्पर्धात्मक विचारों या मजहबों के बहसों के माध्यम से हल किया गया.

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मजहब आधारित संघर्ष अनिवार्य है क्योंकि सभी विचारधाराएं प्रतिस्पर्धी होती हैं और यदि वे स्पर्धा नहीं करेगीं तो रुक जाएंगी और धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी. हालांकि, संघर्षों के बढ़ने से बचने के लिए यह काफी अहम है कि हम विचारों के मुक्त प्रवाह की अनुमति दें और ठहराव से बचें. वे पीढ़ियां जो बॉक्स से बाहर सोचने में असमर्थ रहीं वे रुक गईं.

प्रिंटिंग प्रेस का भी दिया उदाहरण

इतिहास का हवाला देते हुए डोभाल ने कहा कि प्रिंटिंग प्रेस को अपनाने का विरोध एक उदाहरण है जहां पादरी वर्ग की ओर से विरोध हुआ. उन्होंने सोचा कि प्रिंटिंग प्रेस के आगमन के साथ इस्लाम का जो अर्थ उन्हें वास्तविक लगता था, उसकी ठीक से व्याख्या नहीं की जाएगी.