नई दिल्ली। भारतीय नौसेना ने अपनी पनडुब्बी बचाव क्षमता को मजबूत करते हुए एक बड़ा कदम उठाया है। पहली बार नौसेना के डीप सबमर्जेंस रेस्क्यू व्हीकल (DSRV) 'टाइगर एक्स' का सफल उपयोग सिंगापुर में आयोजित बहुराष्ट्रीय अभ्यास 'XPR-25' के दौरान किया गया।
इस अभ्यास में भारतीय बचाव प्रणाली ने हिंद महासागर से बाहर जाकर दक्षिण चीन सागर में काम किया और सहयोगी देशों की पनडुब्बियों से जुड़कर पूर्ण बचाव ड्रिल पूरी की।
अभ्यास 'XPR-25' का विवरण
15 से 25 सितंबर तक चलने वाले इस अभ्यास में 40 से अधिक देशों की नौसेनाओं ने हिस्सा लिया। इसे दो चरणों में आयोजित किया गया:
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तटीय चरण: 15 से 20 सितंबर
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समुद्री चरण: 21 से 25 सितंबर
समुद्री चरण में तीन देशों की पनडुब्बी बचाव इकाइयां शामिल हुईं:
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सिंगापुर का MV Swift Rescue
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जापान का JS Chiyoda
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भारत का INS निस्तार
इसके अलावा, दक्षिण कोरिया, जापान और सिंगापुर की पनडुब्बियों को 'डिसेबल्ड सबमरीन' के रूप में प्रयोग किया गया।
भारत की ताकत का प्रदर्शन
23 सितंबर को 'टाइगर एक्स' ने पहली बार हिंद महासागर से बाहर गोता लगाया। इसने पहले साउथ कोरिया की पनडुब्बी Shindol-Seok (S-082) और फिर सिंगापुर की RSS Invincible से सफलतापूर्वक जुड़ाव किया।
भारत ने 2016 में ब्रिटेन की JFD Global से दो DSRV खरीदे थे, जिनकी कीमत 193 मिलियन पाउंड है। इन सिस्टम में बचाव वाहन, लॉन्च और रिकवरी उपकरण, TUP (ट्रांसफर अंडर प्रेशर) सिस्टम और 25 साल की तकनीकी सहायता शामिल है।
TUP सिस्टम की खासियत
TUP सिस्टम दबाव वाले वातावरण में कर्मियों को सुरक्षित रूप से स्थानांतरित करता है, जिससे गोताखोर या पनडुब्बी कर्मियों को डीकंप्रेशन बीमारी का खतरा नहीं होता।
INS निस्तार की पहली भागीदारी
INS निस्तार ने भी पहली बार ऑपरेशनल भूमिका निभाई। इसे 18 जुलाई को नौसेना में शामिल किया गया था। 118 मीटर लंबे इस जहाज को हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड (HSL) ने तैयार किया है।
INS निस्तार की विशेषताएं
INS निस्तार का वजन 10,000 टन से अधिक है और यह 60 दिन तक समुद्र में रह सकता है। इसे विशेष रूप से DSRV के 'मदरशिप' के रूप में डिज़ाइन किया गया है। इसमें 15 टन का सबसी क्रेन, गोताखोरी बेल, ROV, सोनार सिस्टम, कम्प्रेशन चेंबर और सेल्फ-प्रोपेल्ड हाइपरबैरिक लाइफ बोट है। इसके आगे हेलीकॉप्टर लैंडिंग डेक भी मौजूद है।
यह कदम भारतीय नौसेना की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पनडुब्बी बचाव क्षमता को बढ़ाने और सहयोगी देशों के साथ संयुक्त बचाव अभ्यास में भागीदारी को मजबूत करने में महत्वपूर्ण साबित हुआ है।