भारत का दुनिया को संदेश, राजनाथ बोले- शेर मेंढक मारे तो अच्छा संदेश नहीं

लोकसभा में सोमवार को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले और उसके जवाब में भारतीय सेना द्वारा की गई कार्रवाई ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर विस्तृत चर्चा की शुरुआत हुई। सरकार की ओर से चर्चा की शुरुआत करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट किया कि भारतीय सेना ने पाक सीमा के भीतर घुसकर आतंकियों के अड्डों को पूरी तरह नष्ट कर दिया और इस कार्रवाई में भारत को कोई सैन्य नुकसान नहीं हुआ।

‘सेना के साहस को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सराहे संसद’

राजनाथ सिंह ने विपक्ष पर भी निशाना साधते हुए कहा कि यह समय राजनीति का नहीं, बल्कि एक स्वर में देश की सैन्य शक्ति को सम्मान देने का है। उन्होंने कहा, “संसद को दलगत मतभेदों से ऊपर उठकर सेना के पराक्रम का अभिनंदन करना चाहिए।” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति की सराहना करते हुए उन्होंने याद दिलाया कि 2015 में जब मोदी लाहौर गए थे और नवाज़ शरीफ से मिले थे, तब भारत ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया था। उन्होंने कहा, “हमारी प्रकृति बुद्ध की है, युद्ध की नहीं।”

पाकिस्तान ने खुद मांगी सैन्य कार्रवाई रोकने की गुहार

रक्षा मंत्री ने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद, 10 मई को पाकिस्तान की ओर से सैन्य कार्रवाई थामने का प्रस्ताव आया। “पाकिस्तानी डीजीएमओ ने भारत के डीजीएमओ से संपर्क कर सीमावर्ती गोलीबारी रोकने की अपील की थी,” उन्होंने कहा। इसके बाद 12 मई को औपचारिक वार्ता हुई और दोनों पक्षों ने सैन्य गतिविधियों को रोकने पर सहमति जताई।

‘भारत अपनी गरिमा के खिलाफ जाकर पाकिस्तान से मुकाबला नहीं करेगा’

राजनाथ सिंह ने तीखे शब्दों में कहा कि भारत अपनी प्रतिष्ठा गिराकर किसी कमजोर दुश्मन से लड़ाई नहीं करेगा। “शेर कभी मेंढक पर हमला नहीं करता,” कहते हुए उन्होंने यह संदेश दिया कि भारत आतंकी गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई तो करेगा, पर पाकिस्तान की उकसाने वाली रणनीतियों में नहीं फंसेगा।

सामूहिक एकता को बताया सबसे बड़ी ताकत

उन्होंने विपक्ष से अपील करते हुए कहा, “यह समय है कि सभी दल ‘संगच्छध्वं संवदध्वं’ के मंत्र को अपनाएं और एकजुट होकर राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति संकल्प लें।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि सामाजिक और राजनीतिक एकता ही भारत की सबसे बड़ी ताकत है।

‘जरूरत पड़ी तो आतंकियों के घर में घुसकर मारेंगे’

राजनाथ सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने आतंकी संगठनों के खिलाफ स्पष्ट नीति अपनाई है। “ब्रिक्स सम्मेलन में पहली बार लश्कर और जैश जैसे संगठनों को आतंकवाद से जोड़ा गया। भारत ने यह भी दिखा दिया कि अगर आवश्यकता पड़ी तो हम सरहद पार जाकर आतंकियों के अड्डों को खत्म करेंगे।”

वैश्विक मंचों पर भारत की मुखर कूटनीति

रक्षा मंत्री ने एससीओ (SCO) सम्मेलन का हवाला देते हुए बताया कि भारत ने वहां भी आतंकवाद पर सख्त रुख अपनाया और जब तक आतंकवाद के खिलाफ स्पष्ट स्टैंड नहीं लिया गया, तब तक संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर नहीं किए। इसी तरह ब्रिक्स सम्मेलन में भी भारत ने चीन की मौजूदगी में जम्मू-कश्मीर में हुए आतंकी हमलों की खुलकर निंदा करवाई—जो इस मंच पर पहली बार हुआ।

पूर्व विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी की किताब का हवाला

राजनाथ सिंह ने 2008 के मुंबई हमलों के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार की कार्रवाई पर अप्रत्यक्ष रूप से टिप्पणी करते हुए पूर्व विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी की पुस्तक The Coalition Years का हवाला दिया। उन्होंने उद्धृत किया कि उस समय सैन्य हस्तक्षेप पर चर्चा हुई थी, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया। उन्होंने यह भी बताया कि वरिष्ठ अधिकारी शिवशंकर मेनन ने लश्कर के मुख्यालय पर मिसाइल हमले का सुझाव दिया था, लेकिन उसे अमल में नहीं लाया गया।

‘अगर पहले कठोर कदम उठाए जाते…’

रक्षा मंत्री ने कहा, “मैं पिछली सरकार की आलोचना नहीं कर रहा, लेकिन अगर 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक या 2019 की एयर स्ट्राइक जैसे निर्णायक कदम पहले उठाए गए होते, तो पाकिस्तान की रणनीति बदल सकती थी।”

ऑपरेशन सिंदूर: भारत का निर्णायक प्रतिशोध

उल्लेखनीय है कि 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद 6-7 मई की रात भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान सीमा के भीतर आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। इसके बाद भारत ने कूटनीतिक स्तर पर भी बड़ा अभियान चलाया। सात सर्वदलीय संसदीय दलों को दुनिया के 33 देशों में भेजा गया जहां भारत ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ अपना पक्ष मजबूती से रखा।

इन प्रतिनिधिमंडलों ने फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, जापान, रूस, कतर, यूएई जैसे देशों में जाकर भारत की आतंकवाद के प्रति ‘शून्य सहिष्णुता’ नीति से विश्व समुदाय को अवगत कराया। इस वैश्विक अभियान में कुल 51 सांसदों सहित वरिष्ठ राजनयिक और पूर्व केंद्रीय मंत्री शामिल रहे।

अब संसद के मानसून सत्र में इस पूरे घटनाक्रम पर विस्तार से चर्चा की गई, जिसमें भारतीय सेना, सरकार की नीति और वैश्विक मंचों पर कूटनीतिक रणनीति को लेकर विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया।

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