संयुक्त राष्ट्र में दुनिया के सामने जयशंकर ने रखी भारत की बात

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आज संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र को संबोधित किया। अपने संबोधन में एस जयशंकर ने आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान और कनाडा को आइना दिखाया। विदेश मंत्री जयशंकर ने अपने भाषण में जी20 की कामयाबी की बात तो की ही। लेकिन जयशंकर ने खालिस्तानी आतंकियों की पनाहगाह बने कनाडा का भी मुद्दा छेड़ा। यूएन सहित कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत आतंकवाद को पनाह देने वाले देशो के खिलाफ भारत मुखर रहा है। ऐसे देशों में पाकिस्तान पहले नंबर पर है। लेकिन अब इस लिस्ट में कनाडा भी जुड़ गया है। 

विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने अपने संबोधन की शुरुआत में कहा कि भारत की ओर से नमस्ते। विश्वास के पुनर्निर्माण और वैश्विक एकजुटता को फिर से जगाने के इस यूएनजीए के विषय को हमारा पूरा समर्थन है। यह हमारी आकांक्षाओं और लक्ष्यों को साझा करते हुए हमारी उपलब्धियों और चुनौतियों का जायजा लेने का एक अवसर है। वास्तव में दोनों के संबंध में भारत के पास साझा करने के लिए बहुत कुछ है। एस जयशंकर ने कहा कि दुनिया अभूतपूर्व तनाव के दौर से गुजर रही है। इसके साथ ही कहा कि भारत अपनी जिम्मेदारी को भलि-भांति समझता है। भारत ने जी20 की अध्यक्षता की। कूटनीति और बातचीत ही तनाव को कम कर सकता है। विकासशील देश तनाव से गुजर रहे हैं। ईस्ट वेस्ट नार्थ साउथ में गैर बराबरी है। 

एस जयशंकर ने कहा कि अब अन्य देशों की बात भी सुननी पड़ेगी और केवल कुछ देशों का एजेंडा नहीं चल सकता है। दिल्ली में जी20 समिट में कई रिफॉर्म किए गए। इससे हमें 125 देशों से सीधे सुनने और उनकी चिंताओं को जी20 एजेंडा पर रखने में सक्षम बनाया गया। परिणामस्वरूप, जो मुद्दे सामने आए वैश्विक ध्यान आकर्षित करने के लायक को निष्पक्ष सुनवाई मिली। इससे भी अधिक, विचार-विमर्श ने ऐसे परिणाम दिए जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए बहुत महत्व रखते हैं। एस जयशंकर ने कहा कि जी20 में ग्लोबल साउथ की आवाज हमने उठाई। भारत की पहल पर अफ्रीकी संघ जी20 का सदस्य बना। जी20 के घोषणापत्र में सभी देशों की बात सुनी गई। इंडो पैसेफिक में क्वाड का अहम रोल है। विश्व मित्र की तरफ हम सभी बढ़े हैं।  

अपने विचार-विमर्श में हम अक्सर नियम-आधारित आदेश को बढ़ावा देने की वकालत करते हैं। इसमें समय-समय पर संयुक्त राष्ट्र चार्टर का सम्मान भी शामिल है। लेकिन सारी बातचीत के लिए, अभी भी कुछ राष्ट्र ही एजेंडा को आकार देते हैं और मानदंडों को परिभाषित करना चाहते हैं। यह अनिश्चित काल तक नहीं चल सकता और न ही इसे चुनौती दिए बिना जारी रखा जा सकता है। एक बार जब हम सब इस पर ध्यान देंगे तो एक निष्पक्ष, न्यायसंगत और लोकतांत्रिक व्यवस्था निश्चित रूप से सामने आएगी।  

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