कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के लिए अलग धर्म का दर्जा देने की मांग फिर जोर पकड़ रही है। सोमवार को लिंगायत मठाधीश्वर ओक्कुटा (लिंगायत संतों का संघ) ने “बसवा संस्कृति अभियान-2025” का आयोजन किया, जिसमें समुदाय के लिए अलग धर्म का दर्जा देने की मांग प्रमुख रही।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उनका कोई व्यक्तिगत रुख नहीं है। उन्होंने कहा, “लोगों का रुख ही मेरा रुख है। जाति जनगणना के दौरान ही यह स्पष्ट हो जाएगा कि लोग किस धर्म को मानते हैं। यह मुद्दा हमेशा से रहा है और कुछ विरक्त मठ स्वामी इसे उठाते रहे हैं।”
वहीं, विपक्षी भाजपा ने इस मुद्दे को हिंदू समाज को बांटने की कोशिश करार दिया। कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष बी. वाई. विजयेंद्र ने कहा, “लिंगायतों के लिए अलग धर्म का दर्जा देने की मांग फिर उठ रही है। यह हिंदू धर्म और समाज को बांटने की कोशिशों का हिस्सा है। हमें समाज को एकजुट रखना होगा और सभी समुदायों के साथ न्याय सुनिश्चित करना होगा। पहले भी ऐसी कोशिशें हुईं थीं, लेकिन वे सफल नहीं हुईं और भविष्य में भी नहीं होंगी।”
लिंगायत समुदाय को कर्नाटक की प्रमुख जातियों में गिना जाता है और राज्य की लगभग 18 फीसदी आबादी लिंगायत है। 12वीं सदी में समाज सुधारक बासवन्ना ने जातिवाद के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था। लिंगायत समाज में मूर्ति पूजा को नहीं मानते और वेदों के ग्रंथों को भी स्वीकार नहीं करते। वे शिव की पूजा नहीं करते, बल्कि अपने शरीर पर ‘इष्टलिंग’ धारण करते हैं, जो एक गेंद के आकार का प्रतीक है।
यह मुद्दा राज्य में राजनीतिक और सामाजिक बहस का केंद्र बना हुआ है और आने वाले दिनों में इसे लेकर और चर्चाएं होने की संभावना है।