नई दिल्ली: चीफ जस्टिस बीआर गवई ने रविवार को कहा कि कानूनी सहायता केवल दान या मदद करने का काम नहीं है, बल्कि यह समाज के प्रति एक नैतिक कर्तव्य है। उन्होंने यह बात राष्ट्रीय सम्मेलन और कानूनी सेवा दिवस के समापन समारोह में कही। जस्टिस गवई ने कहा कि जो लोग कानूनी सहायता के कार्य में लगे हैं, उन्हें अपने कर्तव्य को प्रशासनिक दृष्टिकोण और सोच के साथ निभाना चाहिए, ताकि कानून का शासन देश के हर हिस्से तक पहुंच सके।

समारोह में जस्टिस गवई ने सुझाव दिया कि राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नालसा) और राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों में एक स्थायी सलाहकार समिति बनाई जाए। इस समिति में वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष के साथ दो-तीन भविष्य के कार्यकारी प्रमुख भी शामिल हों, ताकि नीति निर्माण में निरंतरता बनी रहे। उन्होंने कहा कि इस तरह की समिति न्याय के वितरण में योजना, समन्वय और नवाचार सुनिश्चित करेगी और हर प्रयास वास्तव में जरूरतमंद तक पहुंचे।

जस्टिस गवई ने जोर देकर कहा कि कानूनी सेवा प्राधिकरणों को दीर्घकालिक दृष्टि के साथ अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करना चाहिए। उन्होंने बताया कि वर्तमान में प्राथमिकताएं अक्सर कार्यकारी अध्यक्ष की अवधि तक सीमित रहती हैं, जिससे निरंतरता बनाए रखना मुश्किल होता है। इसका समाधान सलाहकार समिति के निर्माण में है, जो तीन या छह महीने के अंतराल पर परियोजनाओं और नीतियों की समीक्षा कर सके।

कार्यक्रम में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ और उच्च न्यायालयों तथा सुप्रीम कोर्ट के अन्य वरिष्ठ जज मौजूद रहे। जस्टिस गवई 23 नवंबर को सीजेआई के पद से सेवानिवृत्त होंगे। उन्होंने अपने कार्यकाल में नालसा के अध्यक्ष के रूप में किए गए प्रयासों का जिक्र करते हुए बताया कि उनके सहयोगी जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रमनाथ ने उनके साथ देशभर में यात्रा कर कानूनी सहायता के विस्तार में योगदान दिया।