कोरोना महामारी के दौरान संक्रमण से जान गंवाने वाले डॉक्टरों को बीमा कवरेज देने से जुड़े मामले पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि यदि हम अपने डॉक्टरों का ध्यान नहीं रखेंगे तो समाज हमें कभी माफ नहीं करेगा। शीर्ष अदालत ने इस मामले में बहस पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया है।

यह मामला केंद्र सरकार की उस बीमा योजना से जुड़ा है, जो कोविड-19 के दौरान ड्यूटी पर तैनात स्वास्थ्यकर्मियों को कवरेज देती थी। अब प्रश्न यह है कि क्या वे डॉक्टर, जो सरकारी ड्यूटी पर नहीं थे लेकिन महामारी के दौरान मरीजों की सेवा कर रहे थे, इस योजना के पात्र हैं या नहीं।

जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि डॉक्टर मानव जीवन की रक्षा करने वाले पहले योद्धा हैं, और यदि समाज उनके साथ नहीं खड़ा होगा तो यह न्याय नहीं कहलाएगा। कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बीमा कंपनियां वैध दावों को अस्वीकार न करें।

कोर्ट ने कहा – कोविड से मौत का प्रमाण होना जरूरी
पीठ ने स्पष्ट किया कि दावे के लिए यह प्रमाणित होना चाहिए कि संबंधित डॉक्टर सक्रिय रूप से चिकित्सा सेवा में थे और उनकी मृत्यु कोविड संक्रमण के कारण हुई। अदालत ने कहा कि यह किसी ठोस साक्ष्य से साबित होना चाहिए कि डॉक्टर ने महामारी के दौरान क्लीनिक या अस्पताल खोलकर मरीजों की सेवा की थी।

कोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि कोई डॉक्टर सरकारी ड्यूटी पर नहीं था, यह मान लेना गलत है कि वह सेवा नहीं दे रहा था। पीठ ने बताया कि अदालत व्यक्तिगत मामलों की जांच नहीं करेगी, बल्कि बीमा दावों के निपटारे के लिए व्यापक दिशा-निर्देश तय करेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कोविड अवधि में लागू सभी समानांतर बीमा योजनाओं की जानकारी मांगी है। अदालत ने कहा कि निर्धारित सिद्धांतों के आधार पर दावे किए जाएंगे और बीमा कंपनियां इन्हें कोर्ट के निर्देशों के अनुसार निपटाएंगी।

मामले पर सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया।