मणिपुर में जातीय हिंसा में मारे गए कुकी जो समुदाय के 19 लोगों के अवशेषों को शुक्रवार को राज्य के कांगपोकपी जिले में दफनाया गया। मतृकों को फैजांग गांव में आदिवासी एकता समिति (सीओटीयू) सामूहिक रूप से दफनाया गया। इस दौरान मृतकों के दोस्त और रिश्तेदार भी मौजूद रहे।
चुराचांदपुर में दफनाए जाएंगे 87 अन्य शव
संयुक्त परोपकारी संगठन (जेपीओ) के संयोजक लालडॉनलियन वर्ते ने बताया कि आदिवासी समुदाय के 87 अन्य सदस्यों के शव चुराचांदपुर जिले में 20 दिसंबर को दफनाए जाएंगे। 19 मृतकों के अवशेष इंफाल में लगभग आठ महीने से मुर्दाघरों में पड़े हुए थे। आयोजकों ने कहा कि आखिरकार उन्हें 'सम्मानजनक' तरीके से दफनाया गया।
हवाई मार्ग से चुराचांदपुर और कांगपोकपी ले जाए 60 शव
आदिवासी एकता समिति के द्वारा शोक दिवस के रूप में 12 घंटे का बंद बुलाया गया। जिसके बाद कुकी बहुल जिले में कई घरों पर काले झंडे फहराए गए। बाजार और व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद रहे और सार्वजनिक वाहन सड़कों से नदारद रहे। इंफाल घाटी में जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान संस्थान और क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान के मुर्दाघरों से 60 शवों को हवाई मार्ग से चुराचांदपुर और कांगपोकपी जिलों में ले जाया गया।
मृतकों के परिजनों की इच्छा के अनुसार लिया फैसला
इन 60 शवों में से 19 को कांगपोकपी जिले में दफनाया गया जबकि 41 अन्य को चुराचांदपुर भेजा गया। लालडॉनलियन वर्ते ने कहा, 'चुराचांदपुर जिला अस्पताल में 46 शव पड़े हैं। 20 दिसंबर को उन 46 शवों को इंफाल से जिले में लाए गए 41 अन्य लोगों के साथ दफनाया जाएगा।' उन्होंने कहा कि यह फैसला मृतकों के परिजनों की इच्छा के अनुसार लिया गया है।
तीन मई को शुरू हुआ था जातीय संघर्ष
मणिपुर में मेतई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में राज्य के पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' का आयोजन किया गया था। जिसके बाद तीन मई को जातीय हिंसा भड़क गई थी। मणिपुर की आबादी में मेतई समुदाय की हिस्सेदारी करीब 53 फीसदी है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। आदिवासी नगा और कुकी 40 फीसदी से थोड़ा अधिक हैं और पहाड़ी जिलों में रहते हैं।