पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के जरिए यह साबित किया कि ज़रूरत पड़ने पर उन्हें राजनीति करने की पूरी समझ थी। यह बात उनके करीबी सहयोगी और योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने गुरुवार को कही।
प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय के समकालीन लेखन अध्यक्ष केंद्र द्वारा आयोजित 'डॉ. मनमोहन सिंह: जीवन और विरासत' व्याख्यान श्रृंखला में अहलूवालिया ने कहा कि आज भारत और अमेरिका के बीच रक्षा और सुरक्षा सहयोग परमाणु समझौते के बिना संभव नहीं होता। उन्होंने इसे मनमोहन सिंह का ‘शानदार कदम’ बताया और कहा कि कांग्रेस, वाम दलों और कई भाजपा नेताओं के विरोध के बावजूद इसे लागू कराने के लिए उन्होंने बेहतरीन राजनीतिक प्रबंधन किया।
अहलूवालिया ने बताया कि उस समय मनमोहन सिंह पर इतना दबाव था कि उन्होंने सोनिया गांधी को इस्तीफा सौंपने की पेशकश की थी। वाम दलों ने सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दी थी, लेकिन सिंह ने स्थिति को संभालते हुए इसे विश्वास मत में बदल दिया और समाजवादी पार्टी का समर्थन हासिल किया। तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने मुलायम सिंह यादव से बात करके इस प्रक्रिया में मदद की।
अहलूवालिया ने कहा कि यह राजनीति का बड़ा उदाहरण था, क्योंकि आम तौर पर मनमोहन सिंह को राजनेता नहीं माना जाता था। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस समझौते की पूरी सराहना अब तक नहीं हुई है और कई नेताओं ने इसकी वास्तविक महत्ता को नहीं समझा। उन्होंने इसे मनमोहन सिंह की दूरदर्शिता और राजनीतिक चतुराई का प्रमाण बताया।