पेड़ों की कटाई और मूसलाधार बारिश से भरभराया पहाड़, वायनाड भूस्खलन पर रिसर्च

केरल में भीषणतम प्राकृतिक आपदा आने के कारणों में उसके पर्वतीय इलाके के पर्यावरण से छेड़छाड़ होना प्रमुख है। अव्वल तो वायनाड और आसपास के जिले अत्यधिक भूस्खलन वाले जोन में आते हैं। उस पर से जिन इलाकों में भूस्खलन से भारी नुकसान हुआ है, शहरीकरण और पर्यटन क्षेत्र के चलते वहां के जंगल ही साफ किए जा चुके हैं। उस पर से तीव्रतम मूसलाधार बारिश ने पहाड़ी को कई जगहों से बेहद कमजोर कर दिया।

वर्ष 2021 के स्प्रंगर के प्रकाशित शोध पत्र में बताया गया है कि भौगोलिक रूप से बेहद संवेदनशील क्षेत्र वेस्टर्न घाट में स्थित केरल के पर्वतीय इलाके भूस्खलन के हाटस्पाट हैं, जहां तकरीबन हर साल ही भूस्खलन होते हैं। लेकिन इस बार की त्रासदी जैसी पहले कभी नहीं हुई। वेस्टर्न घाट में स्थित केरल के इडुक्की, एर्नाकुलम, कोट्टयम, वायनाड, कोझिकोड और मल्लापुरम जिले सबसे संवेदनशील हैं। इसरो की ओर से पिछले साल जारी ‘लैंडस्लाइड एटलस’ के अनुसार भारत के तीस सबसे अधिक भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में दस केरल में हैं।

देश के इन 30 जिलों में वायनाड का स्थान 13वां

देश के इन 30 जिलों में वायनाड का स्थान 13वां है। केरल के जिन 59 प्रतिशत इलाकों में भूस्खलन की घटनाएं होती हैं, वह खेती वाले इलाके हैं। इसके अलावा, वर्ष 1950 से 2018 के बीच वायनाड जिले के 62 प्रतिशत जंगल साफ हो गए हैं। करीब 1800 प्रतिशत हरियाली का सफाया हुआ है। इसके अलावा, वायनाड में सोमवार और मंगलवार की दरमियानी रात में 140 मिमी बरसात हुई।

‘300 मिमी से अधिक बारिश दर्ज की गई’

कुछ इलाकों में तो इसी अवधि में 300 मिमी से अधिक बारिश दर्ज की गई। लिहाजा, मूसलाधार ने केरल को सबसे भीषण आपदा से रूबरू कराया। केरल विश्वविद्यालय में भूविज्ञान के एसिस्टेंट प्रोफेसर केएस सजिनकुमार ने बताया कि इस पर्वतीय क्षेत्र में पहाड़ पर दो तरह की परतें हैं। सख्त चट्टानों के ऊपर मिट्टी की मोटी परत चढ़ी रहती है, लेकिन भारी वर्षा से मिट्टी में नमी भर जाती है और उसका पानी से फूलकर पर्वतीय चट्टानों से फिसलना और धंसना शुरू हो जाता है।

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