विपक्ष द्वारा मतदाता सूचियों में खामियों को लेकर लगाए गए आरोपों का शुक्रवार को चुनाव आयोग ने जवाब दिया। आयोग ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ राजनीतिक दलों और उनके बूथ स्तरीय एजेंटों (बीएलए) ने मतदाता सूची की समय पर बारीकी से जांच नहीं की, जिस कारण गड़बड़ियों का समय रहते पता नहीं चल सका।
मतदाता सूची की जांच का सही समय था ‘दावे और आपत्तियां’ अवधि
निर्वाचन आयोग ने बयान में स्पष्ट किया कि मसौदा मतदाता सूची प्रकाशित होने के बाद दावे और आपत्तियां उठाने का समय राजनीतिक दलों और उनके प्रतिनिधियों के लिए उचित समय था। यदि इस अवधि में खामियों की ओर ध्यान दिया जाता, तो संबंधित एसडीएम और ईआरओ चुनाव से पहले सुधार कर सकते थे।
त्रुटियों के लिए राजनीतिक दलों की भूमिका
आयोग ने कहा कि मतदाता सूची तैयार करने की प्रक्रिया में ईआरओ और बीएलओ मुख्य जिम्मेदार होते हैं, लेकिन हर चरण में राजनीतिक दलों की भागीदारी होती है। आयोग ने यह भी कहा कि कई त्रुटियों की वजह बूथ स्तर के एजेंटों द्वारा सूचियों की सही ढंग से समीक्षा न करना रही। बिहार में भी यही स्थिति देखने को मिली।
आयोग ने कहा कि राजनीतिक दलों और मतदाताओं द्वारा सूची की जांच की जा सकती है और यह हमेशा स्वागत योग्य है। इससे ईआरओ और एसडीएम को त्रुटियों को दूर करने और सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने में मदद मिलती है। बिहार में सभी राजनीतिक दलों को 20 जुलाई 2025 से उन लोगों की सूची उपलब्ध कराई गई है, जिनका नाम वोटर लिस्ट से हटाया जाना है।
चुनाव आयोग ने दोहराया कि समय पर और सही प्रक्रिया से उठाई गई शिकायतें मतदाता सूची में सुधार और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में मदद कर सकती हैं।