फांसी का मामला न हो तो तत्काल सुनवाई नहीं होगी: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत ने बुधवार को स्पष्ट किया कि किसी भी मामले को उसी दिन सुनवाई के लिए सूचीबद्ध (लिस्ट) करना केवल तब संभव है, जब मामला अत्यंत गंभीर हो, जैसे कि किसी व्यक्ति की फांसी का मामला। उन्होंने वकीलों से यह भी सवाल उठाया कि क्या वे जजों के काम के घंटे, उनकी थकान और नींद की कमी को समझते हैं।

जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ में जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह भी शामिल थे। यह पीठ उन मामलों की मेनशनिंग सुन रही थी, यानी ऐसे अनुरोध जिनमें तुरंत सुनवाई की मांग की जाती है।

राजस्थान में मकान की नीलामी रुकवाने की अपील

सुनवाई के दौरान वकील शोभा गुप्ता ने बताया कि राजस्थान में एक रिहायशी मकान की नीलामी आज होनी है और इसके मद्देनजर मामले को तुरंत सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, “जब तक किसी की फांसी या आजादी दांव पर न हो, मैं उसी दिन केस लिस्ट नहीं करूंगा। आपको अंदाजा नहीं है कि हम कितने घंटे काम करते हैं और हमें कितनी नींद मिलती है।”

वकील ने सुनवाई की पुनः गुहार लगाई, तो जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि नीलामी का नोटिस कब जारी हुआ था। शोभा गुप्ता ने बताया कि नोटिस पिछले हफ्ते जारी हुआ था और बकाया राशि का कुछ हिस्सा जमा किया जा चुका है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि इस मामले की तत्काल सुनवाई की उम्मीद न रखें, यह केस कम से कम दो महीने तक सूचीबद्ध नहीं होगा। हालांकि बाद में उन्होंने कोर्ट मास्टर को आदेश दिया कि केस को शुक्रवार को सूचीबद्ध किया जाए।

जजों के काम का बोझ और न्याय प्रणाली पर दबाव

सुप्रीम कोर्ट में हर दिन कई वकील अपने मामलों की तुरंत सुनवाई की मांग करते हैं। जस्टिस सूर्यकांत का बयान यह स्पष्ट करता है कि केवल अत्यंत गंभीर मामलों में ही तत्काल सुनवाई होगी। साथ ही, उन्होंने जजों के भारी काम के बोझ और न्यायिक प्रणाली पर बढ़ते दबाव को भी उजागर किया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here