हिंदी का नहीं, अनिवार्य बनाने का विरोध किया… भाषा विवाद पर पवन कल्याण की सफाई

आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और जनसेना पार्टी के प्रमुख पवन कल्याण ने शनिवार को हिंदी भाषा को अनिवार्य बनाने के खिलाफ अपने पहले के रुख को बदलने को लेकर हो रही आलोचना के बीच हिंदी थोपने के विवाद पर अपना रुख साफ किया. कल्याण ने तमिलनाडु में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को लेकर चल रहे विवाद में एनडीए सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का समर्थन किया.

शुक्रवार को पीथमपुरम में आयोजित जन सेना की 12वीं स्थापना बैठक में पवन कल्याण ने हिंदी भाषा के विरोध पर प्रतिक्रिया देते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं. उनकी टिप्पणियां चर्चा का विषय बन गईं. उन्होंने कहा कि जो लोग हिंदी का विरोध करते हैं, वे अपनी फिल्मों को हिंदी में क्यों डब कर रहे हैं? उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से तमिलनाडु सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि सभी भाषाएं आवश्यक हैं,

आंध्र के उपमुख्यमंत्री का तमिलनाडु की विरोधी राजनीतिक पार्टियां विरोध कर रही हैं, क्योंकि उन्होंने एनईपी में तीन-भाषा अनिवार्य नीति पर भाजपा का बचाव किया.

हिंदी का विरोध नहीं, अनिवार्य बनाने का विरोध: पवन कल्याण

आलोचनाओं पर पलटवार करते हुए पवन कल्याण ने कहा कि उन्होंने कभी भी एक भाषा के रूप में हिंदी का विरोध नहीं किया और केवल इसे अनिवार्य बनाने का विरोध किया.

उन्होंने सोशल साइट एक्स पर कहा कि किसी भाषा को जबरन थोपना या किसी भाषा का आंख मूंदकर विरोध करना; दोनों ही हमारे भारत के राष्ट्रीय और सांस्कृतिक एकीकरण के उद्देश्य को प्राप्त करने में मदद नहीं करते हैंय

उन्होंने कहा कि मैंने कभी भी हिंदी भाषा का विरोध नहीं किया. मैंने केवल इसे अनिवार्य बनाने का विरोध किया, जब NEP 2020 खुद हिंदी को लागू नहीं करता है, तो इसके लागू होने के बारे में गलत बयानबाजी करना जनता को गुमराह करने के अलावा और कुछ नहीं है.

NEP 2020 की गलत व्याख्या की जा रही है

उन्होंने कहा कि NEP 2020 के अनुसार, छात्रों को किसी भी दो भारतीय भाषाओं (अपनी मातृभाषा सहित) को एक विदेशी भाषा के साथ सीखने की सुविधा है. यदि वे हिंदी नहीं पढ़ना चाहते हैं, तो वे तेलुगु, तमिल, मलयालम, कन्नड़, मराठी, संस्कृत, गुजराती, असमिया, कश्मीरी, ओडिया, बंगाली, पंजाबी, सिंधी, बोडो, डोगरी, कोंकणी, मैथिली, मैतेई, नेपाली, संथाली, उर्दू या किसी अन्य भारतीय भाषा का विकल्प चुन सकते हैं.

उन्होंने कहा कि बहु-भाषा नीति छात्रों को विकल्प के साथ सशक्त बनाने, राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने और भारत की समृद्ध भाषाई विविधता को संरक्षित करने के लिए बनाई गई है. राजनीतिक एजेंडे के लिए इस नीति की गलत व्याख्या करना और यह दावा करना कि पवन कल्याण ने अपना रुख बदल लिया है, यह समझ की कमी को ही दर्शाता है. जन सेना पार्टी हर भारतीय के लिए भाषाई स्वतंत्रता और शैक्षिक विकल्प के सिद्धांत पर दृढ़ता से खड़ी है.

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