केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया है कि अनियंत्रित ऑनलाइन गेमिंग एप्स न केवल वित्तीय अपराधों को बढ़ावा दे रहे हैं, बल्कि इनका इस्तेमाल धनशोधन और आतंकवाद को फंडिंग तक में किया जा रहा है। सरकार का कहना है कि इस तेजी से बढ़ते क्षेत्र को नियंत्रण में लाने के लिए कानून बनाना अनिवार्य था। जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने मामले की सुनवाई गुरुवार को करने की संभावना जताई।

सरकार द्वारा दायर हलफनामे में बताया गया है कि ऑनलाइन सट्टेबाजी आधारित गेम्स लगातार वित्तीय धोखाधड़ी, टैक्स चोरी, मनी लॉन्ड्रिंग जैसी गतिविधियों से जुड़े पाए जा रहे हैं। कई प्रकरणों में इन प्लेटफॉर्म्स के जरिये आतंकवादी संगठनों को धन मुहैया कराए जाने के प्रमाण भी सामने आए हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती हैं।

युवा वर्ग पर तेज़ी से बढ़ रहा प्रभाव

हलफनामे के अनुसार, भारी विज्ञापन, सेलिब्रिटी प्रमोशन और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों की मौजूदगी ने इन गेमिंग प्लेटफॉर्म्स को युवाओं और कमजोर तबकों तक तेजी से पहुंचाया है। तकनीकी नेटवर्क और विदेशी सर्वरों के सहारे संचालित ये कंपनियां घरेलू और राज्य स्तर के कानूनों की अनदेखी करती हैं, जिससे इन्हें रोक पाना मुश्किल हो जाता है। इसी पृष्ठभूमि में केंद्र ने 2025 का ऑनलाइन गेमिंग संवर्धन एवं विनियमन कानून लागू किया।

राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे की बात दोहराई

केंद्र ने कहा कि सार्वजनिक हित में यह आवश्यक था कि ऑनलाइन गेमिंग उद्योग को नियंत्रित कर सुरक्षित और जिम्मेदार डिजिटल वातावरण तैयार किया जाए। सरकार ने यह भी दावा किया कि उसके पास ऐसे पुख्ता इनपुट मौजूद हैं, जिनसे साबित होता है कि अनियमित ऑनलाइन गेम्स का नेटवर्क आतंकवादी फंडिंग से जुड़ा रहा है। अदालत की मांग पर वह यह सामग्री सीलबंद लिफाफे में देने को भी तैयार है।

45 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित– सरकार

सरकार ने ऑनलाइन गेमिंग को ‘‘पूरी तरह अनियंत्रित उद्योग’’ बताते हुए कहा कि देशभर में हर साल लगभग 20 हजार करोड़ रुपये ऑनलाइन जुए जैसे गेम्स में गंवाए जा रहे हैं। अनुमान के मुताबिक लगभग 45 करोड़ लोग किसी न किसी रूप में इनके दुष्प्रभावों से प्रभावित हुए हैं। ऐसे में, सरकार का कहना है कि समाज, अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा पर मंडरा रहे जोखिमों को देखते हुए इन प्लेटफॉर्म्स पर सख्त कदम उठाना आवश्यक है।