वक्फ संशोधन अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर ओवैसी की प्रतिक्रिया

वक्फ (संशोधन) अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि यह केवल अंतरिम फैसला है और उम्मीद है कि शीर्ष अदालत जल्द ही इस कानून पर अंतिम निर्णय देगी। ओवैसी का कहना है कि वर्तमान आदेश से वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होगी, बल्कि इससे अतिक्रमणकारियों को बढ़ावा मिल सकता है और वक्फ संपत्तियों का विकास प्रभावित होगा।

ओवैसी ने सीईओ की नियुक्ति से जुड़े प्रावधानों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने यह जरूर कहा है कि नियुक्त व्यक्ति ‘जहां तक संभव हो’ मुस्लिम होना चाहिए, लेकिन सरकार यह तर्क दे सकती है कि उन्हें उपयुक्त मुस्लिम उम्मीदवार नहीं मिला। उन्होंने सवाल उठाया कि जिस पार्टी के पास एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है, वह क्या वक्फ में मुस्लिम अधिकारियों की नियुक्ति करेगी? ओवैसी ने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में किसी गैर-सिख को सदस्य बनाया जाए, तो सिख समुदाय कैसा महसूस करेगा।

हैदराबाद सांसद ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस शर्त पर पूरी तरह रोक नहीं लगाई है कि वक्फ बनाने वाला व्यक्ति कम से कम पांच साल से इस्लाम धर्म का पालन कर रहा हो। उन्होंने तर्क दिया कि भारतीय संविधान की धारा 300 के तहत कोई भी व्यक्ति अपनी संपत्ति किसी को भी दान कर सकता है, फिर केवल वक्फ संपत्ति पर ऐसा प्रतिबंध क्यों लगाया गया है। ओवैसी ने भाजपा से पूछा कि अब तक कितने लोगों ने धर्म परिवर्तन के बाद वक्फ को संपत्ति दान की है।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की कुछ अहम धाराओं को अंतरिम रूप से निलंबित कर दिया है। इसमें वह प्रावधान भी शामिल है, जिसके अनुसार केवल वे लोग वक्फ बना सकते थे, जो कम से कम पांच साल से इस्लाम धर्म का पालन कर रहे हों। हालांकि, अदालत ने पूरे अधिनियम पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि किसी भी कानून को असंवैधानिक मानने से पहले यह अनुमान लगाया जाता है कि वह संविधान के अनुरूप है। हस्तक्षेप केवल अपवादस्वरूप मामलों में किया जाता है। अदालत ने इस विषय पर 128 पन्नों का अंतरिम आदेश जारी किया है।

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