संसदीय समिति की सिफारिश: युवा अपराधियों की स्पष्ट परिभाषा दी जाए

विभाग से संबंधित गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) को युवा अपराधियों की स्पष्ट परिभाषा देने की सिफारिश की है। समिति की सिफारिश ‘जेल – शर्तें, बुनियादी ढांचा और सुधार’ विषय पर अपनी 245वीं रिपोर्ट में आई है। यह रिपोर्ट गुरुवार को संसद के दोनों सदनों (राज्यसभा और लोकसभा) में पेश की गई।

समिति ने अपनी रिपोर्ट के पैरा 2.5.3 में कहा है कि राज्यों में युवा अपराधियों की तस्वीर स्पष्ट नहीं है। इसे देखते हुए समिति सिफारिश करती है कि गृह मंत्रालय द्वारा ‘युवा अपराधियों’ की एक स्पष्ट परिभाषा दी जानी चाहिए, साथ ही सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) की सरकारों को एक सामान्य दिशानिर्देश के साथ उन्हें नियंत्रित करने की प्रक्रिया का वर्णन करना चाहिए। समिति ने कहा, यह भी सिफारिश की जाती है कि इस संबंध में दिशानिर्देश राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों की सुविधा के लिए प्रदान किए जाएं।
 

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘राज्य सरकारें इन युवा अपराधियों को शिक्षा, कौशल और व्यावसायिक प्रशिक्षण, पोषण प्रदान करके उनके समग्र विकास के लिए कदम उठा सकती हैं। इसके अलावा, इस श्रेणी के कैदियों के बीच पुनरावृत्ति की दर की नियमित रूप से निगरानी की जा सकती है और ऐसे युवा अपराधियों की सामाजिक पृष्ठभूमि को समझने के लिए एक अध्ययन किया जा सकता है।’ 
 

समिति ने अपनी रिपोर्ट के पैरा 2.5.4 में कहा है कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों के अधिकार क्षेत्र में स्कूल नहीं हैं। केवल तमिलनाडु और सात अन्य राज्यों अर्थात् हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरल, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान और तेलंगाना के अधिकार क्षेत्र में स्कूल हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए समिति ने सिफारिश की है कि उन क्षेत्रों कम से कम दो से तीन स्कूल खोले जाने चाहिए, जहां यह आवश्यकता के आधार पर मौजूद नहीं है।

 रिपोर्ट के शुरुआती पैरा में समिति ने यह भी कहा कि अति भीड़-भाड़ और न्याय में देरी का मुद्दा एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है, जिससे कैदियों और आपराधिक न्याय प्रणाली दोनों के लिए परिणामों की एक श्रृंखला बन गई है। समिति ने यह भी सिफारिश की है कि भीड़भाड़ वाली जेलों के कैदियों को उसी राज्य या अन्य राज्यों में खाली सेल वाली अन्य जेलों में स्थानांतरित किया जा सकता है।

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