नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि न्याय की भाषा ऐसी होनी चाहिए जिसे आम व्यक्ति आसानी से समझ सके। उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित वाणिज्य न्यायालयों के स्थायी अंतरराष्ट्रीय मंच की छठी पूर्ण बैठक में यह बात कही और जोर दिया कि कानूनी मसौदा तैयार करते समय इस पहलू को ध्यान में रखना जरूरी है।

पीएम मोदी ने सुप्रीम कोर्ट की उस पहल की भी सराहना की, जिसमें 80,000 से अधिक फैसलों का अनुवाद 18 भारतीय भाषाओं में किया गया है। उन्होंने भरोसा जताया कि यह प्रयास धीरे-धीरे उच्च न्यायालयों और जिला स्तर तक भी फैलाया जाएगा।

न्याय तक पहुंच आसान बनाना प्राथमिकता
प्रधानमंत्री ने कहा कि कानूनी जागरूकता बेहद महत्वपूर्ण है। “जब तक व्यक्ति अपने अधिकारों और कानूनी प्रक्रियाओं से अवगत नहीं होगा, वह न्याय तक नहीं पहुंच पाएगा। प्रणाली की जटिलता आम नागरिकों को डराती है। इसलिए कमजोर वर्ग, महिलाएँ और बुजुर्गों में कानूनी जागरूकता बढ़ाना हमारी प्राथमिकता है।” उन्होंने कानून के छात्रों से अपील की कि वे ग्रामीण इलाकों में जाकर लोगों को उनके अधिकार और कानूनी प्रक्रिया समझाएँ, जिससे उन्हें समाज की वास्तविक समस्याओं का अनुभव हो।

‘ईज ऑफ जस्टिस’ सुनिश्चित करना जरूरी
पीएम मोदी ने कहा कि न्याय तभी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि देखे बिना सब तक पहुंचता है, जब वह वास्तव में न्यायसंगत होता है। उन्होंने बताया कि लोक अदालतों और विवादों के पहले निपटान से लाखों मामले जल्दी, सौहार्दपूर्ण और कम खर्च में सुलझाए जा रहे हैं। सरकार की कानूनी सहायता और परामर्श प्रणाली के तहत पिछले तीन वर्षों में लगभग आठ लाख आपराधिक मामलों का निपटारा किया गया, जिससे गरीब, दलित, वंचित और पीड़ित वर्ग को न्याय की सुविधा मिली।

व्यवसाय और जीवन की सहजता के साथ न्याय की सहजता
प्रधानमंत्री ने बताया कि पिछले 11 वर्षों में सरकार ने ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ और ‘ईज ऑफ लीविंग’ को मजबूत बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। 40 से अधिक अनावश्यक अनुपालनों को हटाया गया, 3,400 कानूनी धाराओं को गैर-आपराधिक बनाया गया और 15,000 से अधिक पुराने कानून रद्द किए गए। पीएम मोदी ने कहा, “ईज ऑफ जस्टिस तभी सुनिश्चित हो सकता है, जब व्यवसाय और जीवन की सहजता भी सुनिश्चित हो।”