प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहचान एक वैश्विक नेता के तौर पर होती है. अब उनकी इस पहचान को और मजबूती मिली है. दुनिया के बड़े इंवेस्टर्स में शामिल मार्क मोबियस का कहना है कि पीएम मोदी सही मायनों में ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ के हकदार हैं. इसकी वजह पीएम मोदी के पास ग्लोबल वैश्विक मंच पर राजनीतिक स्पेक्ट्रम के सभी पक्षों के साथ संवाद करने की क्षमता होना है.

मोबियस इमर्जिंग अपॉरच्युनिटी फंड के 88 वर्षीय चेयरमैन मार्क मोबियस का कहना है कि पीएम मोदी दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण शांतिदूत बन सकते हैं. वह भी तब जब दुनिया उथल-पुथल से गुजर रही है. मार्क मोबियस का फंड उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देश में नए अवसरों पर फोकस करता है.

पीएम मोदी कुछ भी करने में सक्षम

न्यूज एजेंसी के साथ एक बातचीत में मार्क मोबियस ने कहा कि पश्चिमी एशिया में चल रहे संघर्ष और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते दुनिया में मची उथल-पुथल के बीच पीएम मोदी एक बहुत ही महत्वपूर्ण शांतिदूत बन सकते हैं.

उन्होंने कहा, ” पीएम मोदी एक महान नेता होने के साथ-साथ एक महान इंसान भी हैं. वह बहुत-बहुत अच्छे इंसान हैं. मुझे लगता है कि ग्लोबल लेवल पर उनकी भूमिका आगे चलकर और बढ़ेगी. वह वैश्विक स्तर पर राजनीतिक स्पेक्ट्रम के सभी पक्षों के साथ संवाद करने में सक्षम हैं. वह आगे चलकर एक महत्वपूर्ण शांतिदूत बन सकते हैं.”

मार्क मोबियस ने कहा कि जब बात नोबेल शांति पुरस्कार की आती है, तो पीएम मोदी “वास्तव में लगभग कुछ भी करने में सक्षम हैं” और इस वैश्विक पुरस्कार के हकदार हैं.

भारत ने निष्पक्ष रहने की हिम्मत दिखाई

मार्क मोबियस ने भारत के वैश्विक परिस्थितियों में तटस्थ रहने की भी तारीफ की. उन्होंने कहा कि इस तरह भारत ने सभी के प्रति निष्पक्ष रहने की अपनी क्षमता दिखाई है. ऐसे में भारत वैश्विक मंच पर शांति के लिए मध्यस्थ के रूप में कार्य करने की बहुत अच्छी स्थिति में है और पीएम मोदी दुनिया में एक प्रमुख मध्यस्थ बनने के लिए बहुत अच्छी तरह से योग्य हैं.

रूस-यूक्रेन के बीच 2 साल से ज्यादा समय से जारी संघर्ष के बीच भारत तटस्थ बना रहा है. इसके बावजूद पीएम मोदी ने लगातार शांतिपूर्ण समाधान की वकालत की है. इससे भारत की दुनिया में स्टेबिलिटी के समर्थक के रूप में पुष्टि होती है. अगस्त में प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन यात्रा दोनों देशों के बीच 1992 में राजनयिक संबंधों की स्थापना के बाद से किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा थी. ये युद्ध से प्रभावित क्षेत्र में शांति को बढ़ावा देने में भारत की सक्रिय भागीदारी को रेखांकित करती है.