संविधान दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट परिसर में आयोजित समारोह में संविधान निर्माताओं को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए तैयार किए गए विस्तृत संविधान ने भारत की संस्थाओं—कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका—को मार्गदर्शन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। राष्ट्रपति ने इन तीनों स्तंभों द्वारा संवैधानिक मूल्यों के पालन के लिए उनकी सराहना की।

"संविधान हमारा राष्ट्रीय ग्रंथ"

राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि भारत का संविधान केवल कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि राष्ट्रीय ग्रंथ है। उन्होंने कहा कि जन–भागीदारी और व्यापक प्रतिनिधित्व के कारण यह दस्तावेज आज जनता का मार्गदर्शक बन चुका है। उन्होंने सुझाव दिया कि आने वाली पीढ़ियों में संवैधानिक चेतना विकसित करने के लिए बच्चों को संविधान से जुड़ी रोचक जानकारियाँ दी जानी चाहिए।

“समन्वयपूर्ण व्यवस्था से बढ़ेगा राष्ट्र का विकास”

अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान विविधता में एकता का आधार है और समानता की भावना का स्रोत है। उनका मानना है कि विभिन्न संवैधानिक संस्थाओं के बीच सामंजस्यपूर्ण कामकाज से नागरिकों को सीधा लाभ मिलेगा और भारत विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ेगा।

संसद समारोह में भी किया संविधान को नमन

इससे पहले, पुराने संसद भवन के केंद्रीय सभागार में आयोजित समारोह में राष्ट्रपति ने 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा संविधान अपनाने के महत्व को याद किया। उन्होंने बाबा साहब भीमराव आंबेडकर की भूमिका का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी 125वीं जयंती के वर्ष 2015 में 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया।

तीन तलाक, GST और अनुच्छेद 370 पर भी बोलीं राष्ट्रपति

राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने संबोधन में कहा कि तीन तलाक की कुप्रथा पर रोक लगाकर संसद ने महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक न्याय को मजबूत किया। उन्होंने GST और अनुच्छेद 370 जैसे अन्य महत्वपूर्ण सुधारों को भी संविधान की भावना के अनुरूप बताया।