सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नगालैंड के मोन जिले में 2021 में एक अभियान के दौरान 13 लोगों की मौत के मामले में 30 सैन्य कर्मियों के खिलाफ मुकदमा बंद कर दिया। केंद्र सरकार ने इन सैन्य कर्मियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मंजूरी देने से इनकार कर दिया था। सरकार की मंजूरी के बिना इन कर्मियों के खिलाफ आगे की कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती। 

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पी.बी. वराले की पीठ ने कहा कि केंद्र ने 28  फरवरी को इन कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। अगर कोई व्यक्ति सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (अफस्पा)  की धारा छह के तहत अधिकारों का उपयोग कर रहा है, तो उसके खिलाफ अभियोजन, मुकदमा या अन्य कानूनी कार्यवाही केवल केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति से ही की जा सकती है।

पीठ ने कहा कि अगर भविष्य में किसी भी समय अफस्पा की धारा छह के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी मिलती है, तो संबंधित प्राथमिकी के आधार पर कार्रवाई जारी रह सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने उन दो अलग-अलग याचिकाओं को स्वीकार किया, जो सैन्य कर्मियों की पत्नियों की ओर से दायर की गई थीं। जिसमें एक मेजर रैंक का अधिकारी भी शामिल था। इन याचिकाओं में नगालैंड पुलिस की ओर से दर्ज किए गए मामले को खत्म करने की मांग की गई थी। 

कोर्ट ने नगालैंड सरकार की उस मांग को भी खारिज किया, जिसमें उसने सेना के आरोपी कर्मियों के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई शुरू करने का निर्देश देने की मांग की थी। कोर्ट ने कहा कि यह मामला सेना के विवेकाधिकार पर निर्भर करता है कि वे अपने अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करेंगे या नहीं। 

सुप्रीम कोर्ट ने 19 जुलाई 2022 के अपने अंतरिम आदेश को अंतिम रूप  दिया, जिसमें राज्य सरकार द्वारा सैन्य कर्मियों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी की आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी गई थी। सैन्य कर्मियों की पत्नियों ने दलील दी कि अफस्पा के तहत उन्हें कानूनी सुरक्षा मिली हुई है और इसलिए नगालैंड सरकार उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही नहीं कर सकती।