तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि वर्ष 2015 में हुए “कैश-फॉर-वोट” मामले में राज्य की एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) की कार्रवाई पूरी तरह अवैध थी, क्योंकि यह किसी एफआईआर दर्ज होने से पहले की गई थी।
रेड्डी उस समय तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) के नेता थे। उन पर आरोप है कि 31 मई 2015 को उन्होंने नामित विधायक एल्विस स्टीफेंसन को 50 लाख रुपये की रिश्वत देने की पेशकश की थी ताकि वे तेदेपा उम्मीदवार वेम नरेंद्र रेड्डी के पक्ष में मतदान करें।
मुख्यमंत्री की ओर से अदालत में वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने पैरवी की। उन्होंने कहा कि “पहले जाल बिछाया गया और बाद में एफआईआर दर्ज की गई, जबकि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत यह पूरी प्रक्रिया असंवैधानिक है।” उन्होंने यह भी दलील दी कि रेड्डी पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 12 के तहत आरोप लगाए गए हैं, जबकि उस समय यह प्रावधान केवल रिश्वत लेने वालों पर लागू था, न कि देने वालों पर।
रोहतगी ने आगे कहा कि अधिनियम की धाराएं 7, 11 और 12 केवल सरकारी कर्मचारियों के आधिकारिक कर्तव्यों से जुड़ी होती हैं, जबकि “वोट डालना या चुनाव में हिस्सा लेना” किसी सरकारी ड्यूटी के दायरे में नहीं आता। सुनवाई बुधवार को अधूरी रही और गुरुवार को भी जारी रहेगी।
उल्लेखनीय है कि जुलाई 2015 में एसीबी ने रेवंत रेड्डी और अन्य के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत आरोपपत्र दाखिल किया था। एसीबी का दावा था कि उसके पास ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग समेत ठोस सबूत मौजूद हैं और 50 लाख रुपये की नकदी भी बरामद की गई थी।
इधर, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का फैसला
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश अतुल श्रीधरन का स्थानांतरण अब इलाहाबाद हाईकोर्ट में करने की सिफारिश की है। पहले अगस्त में कॉलेजियम ने उन्हें छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट भेजने की सिफारिश की थी, जिस पर केंद्र सरकार ने पुनर्विचार का आग्रह किया था। मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में 14 अक्तूबर को हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया।