सुप्रीम कोर्ट ने एंबुलेंस में पर्याप्त जीवन रक्षक सुविधाओं के तंत्र को सुनिश्चित करने और उसे लागू करने से संबंधित याचिका पर केंद्र सरकार सहित संबंधित पक्षों से चार हफ्तों में जवाब मांगा है।
याचिका में सड़क एंबुलेंसों के संचालन, रखरखाव और नियमन की मौजूदा स्थिति का स्वतंत्र समीक्षा करना भी शामिल है, ताकि जमीन पर हालात और वर्तमान एसओपी में अंतर का पता लगाया जा सके।
पीठ, जिसमें प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन शामिल हैं, ने याचिका पर नोटिस जारी किया। केंद्र, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को पक्षकार बनाया गया है। वरिष्ठ अधिवक्ता पर्सीवल बिलिमोरिया और जैस्मीन दामकेवाला याचिकाकर्ताओं सायंशा पनंगीपल्ली और प्रिया सरकार की ओर से पेश हुए।
पनंगीपल्ली प्रसिद्ध कार्डियो-थोरासिक सर्जन डॉ. पी. वेणुगोपाल की पुत्री हैं, जबकि प्रिया सरकार उनकी पत्नी हैं। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि डॉ. वेणुगोपाल के निधन के समय एंबुलेंस में आपातकालीन सुविधाओं की कमी थी, जिससे आक्सीजन की कमी का सामना करना पड़ा।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि देशभर में एंबुलेंस में जीवनरक्षक सुविधाओं की कमी गंभीर चिंता का विषय है और कई जानें अनावश्यक रूप से खो गई हैं, जिन्हें बचाया जा सकता था। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की 16वीं सामान्य समीक्षा रिपोर्ट और नीति आयोग की दिसंबर 2023 की रिपोर्टों में एंबुलेंसों की अपर्याप्तता, कुप्रबंधन और आपातकालीन संसाधनों की कमी को उजागर किया गया है। रिपोर्टों के अनुसार, देश की 90 प्रतिशत एंबुलेंस आवश्यक उपकरण और आक्सीजन जैसी बुनियादी सुविधाओं के बिना चल रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को आदेश दिया है कि वह चार हफ्तों के भीतर याचिकाकर्ताओं की मांगों और मौजूदा स्थिति पर जवाब प्रस्तुत करे, ताकि एंबुलेंस सेवा में सुधार के लिए ठोस कदम उठाए जा सकें।