प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग मां और उसके बच्चे को राजकीय बाल गृह से रिहा करने से इंकार कर दिया है। कोर्ट ने उसकी सास की याचिका खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि नाबालिग को 5 अक्टूबर, 2026 तक बाल गृह में ही रहना होगा। साथ ही, स्वास्थ्य और सुरक्षा की निगरानी के लिए सीएमओ कानपुर को हर महीने कम से कम दो बार डॉक्टर भेजने का निर्देश दिया गया है।
न्यायमूर्ति जेजे मुनीर और न्यायमूर्ति संजीव कुमार की खंडपीठ ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज करते हुए कहा कि नाबालिग पत्नी के साथ रहने पर वयस्क पति पाक्सो अधिनियम के तहत अपराध के लिए उत्तरदायी होगा। ट्रायल कोर्ट भी पहले अनुमति देने से इंकार कर चुका था।
सास ने याचिका में बहू को बाल कल्याण समिति (CWC) के आदेश से रखे गए बाल गृह से रिहा करने की मांग की थी। शादी 3 जुलाई, 2025 को हुई थी और 11 दिन बाद 14 जुलाई, 2025 को लड़की ने बेटे को जन्म दिया। हाई स्कूल की मार्कशीट के अनुसार, शादी के समय लड़की की आयु 17 साल और तीन महीने थी।
लड़की के पिता ने अपहरण की धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई, जिसमें पति को 22 जुलाई, 2025 को गिरफ्तार किया गया। नाबालिग को भी हिरासत में लिया गया और CWC के समक्ष पेश किया गया। यहां उसने माता-पिता के घर लौटने से इंकार किया और कहा कि वह पति के साथ रहना चाहती है।
याची के अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट के 2011 के फैसले के हवाले से बहस की, लेकिन खंडपीठ ने कहा कि तब से कानून में बदलाव आया है। 2013 में सहमति की न्यूनतम उम्र 18 साल कर दी गई है और वर्तमान मामले में विवाह इसी कानून के तहत हुआ है।
पीठ ने कहा कि बालिग पति के आजाद होते ही कानून यह सुनिश्चित नहीं कर सकता कि कोई शारीरिक संबंध न बने। चूंकि नाबालिग मां माता-पिता के घर लौटने से इंकार कर चुकी है, इसलिए राजकीय बालिका गृह में रहना ही सुरक्षित और वैध विकल्प है।