उत्तर 24 परगना जिले के हाकिमपुर बीएसएफ चौकी के पास शनिवार को असामान्य दृश्य देखने को मिला। धूल भरे रास्तों पर छोटे-छोटे बैग लिए परिवार, हाथ में पानी की बोतल लिए बच्चे और शांत बैठे पुरुष—सभी एक ही अनुरोध दोहरा रहे थे, “हमें घर जाने दीजिए।” ये वही लोग हैं जिन्हें सुरक्षा एजेंसियां ‘अवैध बांग्लादेशी निवासी’ बता रही हैं। पिछले कई वर्षों से वे पश्चिम बंगाल के अलग-अलग इलाकों में रहकर काम कर रहे थे, पहचान पत्र बनवा चुके थे, लेकिन अब विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के चलते वापस लौटने को मजबूर हैं।

डर और मजबूरी की वजह
खुलना जिले की रहने वाली शाहिन बीबी अपने छोटे बच्चे के साथ सड़क किनारे इंतजार कर रही थीं। उन्होंने बताया, “हम गरीबी के कारण भारत आए थे। दस्तावेज सही नहीं थे। अब जांच हो रही है, इसलिए वापस लौटना ही बेहतर है।” कई लोग मानते हैं कि उन्होंने आधार, राशन कार्ड और वोटर आईडी जैसे कागजात दलालों के जरिए बनवाए थे। एसआईआर में पुराने दस्तावेजों की दोबारा जांच हो रही है, जिससे लोग पूछताछ और हिरासत से बचने के लिए स्वयं सीमा पर पहुंच रहे हैं।

29 वर्षीय मनीरुल शेख, जो ढुलागोरी की फैक्टरी में काम करते हैं, कहते हैं, “हमने भारत में प्रवेश के लिए 5,000-7,000 रुपये दिए, लेकिन कागज बनवाने में 20,000 रुपये खर्च हो गए। अब एसआईआर ने सब डराने का काम कर दिया है।” वहीं इमरान गाजी ने बताया, “मैंने 2016, 2019, 2021 और 2024 में वोट दिया, लेकिन 2002 का कोई असली कागज नहीं है। इसलिए लौट रहा हूं।”

बीएसएफ चौकी पर भीड़ और इंतजार
बीएसएफ अधिकारियों के अनुसार, रोजाना 150–200 लोग पकड़े जाते हैं और जांच के बाद उन्हें वापस भेजा जाता है। 4 नवंबर से एसआईआर के दूसरे चरण की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से चौकी पर भीड़ लगातार बढ़ रही है। यहां आने वाले लोगों का बायोमैट्रिक डेटा पुलिस और प्रशासन को भेजा जाता है। भीड़ बढ़ने पर कई बार दो-तीन दिन तक इंतजार करना पड़ता है। बीएसएफ भीतर खाना उपलब्ध करा रहा है, जबकि बाहर सड़क किनारे चाय-ढाबों पर निर्भर रहना पड़ रहा है।

परिवार और बच्चों की चिंता
कतार में खड़ी छह साल की बच्ची ने अपनी मां से कहा, “न्यू टाउन में अपने दोस्तों को याद करूंगी।” उसकी मां ने बताया कि वे पिछले साल 25,000 रुपये देकर बॉर्डर पार करके आए थे। पिता ने कहा, “गरीबी हमें लाया, डर हमें वापस भेज रहा है।” स्थानीय व्यापारी और युवा मिलकर इन परिवारों को भोजन भी बांट रहे हैं।

बीएसएफ का एक जवान कहते हैं, “ये लोग रात के अंधेरे में आए थे, अब दिन की रोशनी में लौट रहे हैं। फर्क बस इतना ही है।” पिछले छह दिनों में करीब 1,200 लोग आधिकारिक प्रक्रिया पूरी कर बांग्लादेश लौट चुके हैं। शनिवार को भी लगभग 60 लोग इंतजार कर रहे थे।