तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) 24 नवंबर को एक आंतरिक बैठक करेगी, जिसकी अध्यक्षता महासचिव अभिषेक बनर्जी करेंगे। बैठक का मुख्य उद्देश्य विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की समीक्षा करना और यह सुनिश्चित करना है कि मतदाता सूची में कोई भी नाम छूट न जाए। पार्टी 25 नवंबर को इस प्रक्रिया के खिलाफ रैली आयोजित करने पर भी विचार कर रही है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में चल रही एसआईआर प्रक्रिया को लेकर गहरी चिंता जताई है और चुनाव आयोग से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने इसे 'योजना विहीन, अव्यवस्थित और खतरनाक' प्रक्रिया बताया। ममता ने कहा कि प्रशिक्षण की कमी, आवश्यक दस्तावेजों की अस्पष्टता और मतदाताओं के कामकाजी समय के चलते सही डेटा एकत्र करना लगभग असंभव हो गया है।

मुख्यमंत्री ने बताया कि बूथ स्तर के अधिकारी (बीएलओ) अत्यधिक दबाव में काम कर रहे हैं। सर्वर की तकनीकी दिक्कतें, प्रशिक्षण की कमी और ऑनलाइन फॉर्म भरने में परेशानियां बढ़ रही हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि इससे असली मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं और पूरी प्रक्रिया की विश्वसनीयता प्रभावित हो सकती है। ममता ने आरोप लगाया कि बीएलओ पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की धमकी देकर उन्हें डराया जा रहा है, जबकि उन्हें सहयोग और समर्थन मिलना चाहिए।

शुभेंदु अधिकारी का आरोप

वहीं, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी के पत्र का जवाब देते हुए चुनाव आयोग को अपना पत्र सौंपा। अधिकारी ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री का पत्र चुनाव आयोग के संवैधानिक अधिकार को कमजोर करने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि यह पत्र मतभेद पैदा करने और अवैध या अयोग्य मतदाताओं को बचाने के लिए लिखा गया। अधिकारी ने इसे केवल प्रशासनिक मुद्दा नहीं, बल्कि लोकतंत्र पर हमला बताया।

राज्यपाल का दृष्टिकोण

राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश को संविधान में शक्तियों के विभाजन के सिद्धांत को मजबूत करने वाला बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि अदालतें राष्ट्रपति और राज्यपाल को किसी विधेयक पर हस्ताक्षर करने के लिए समय सीमा नहीं तय कर सकतीं। राज्यपाल ने कहा कि चुने हुए मुख्यमंत्री ही सरकार का असली चेहरा हैं, जबकि उनकी भूमिका सीमाओं के भीतर सहयोग करने तक सीमित है। इस आदेश से यह संदेश मिलता है कि सभी पदों के अधिकार और जिम्मेदारियां स्पष्ट रूप से निर्धारित हैं।