उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने IIT हैदराबाद के छात्रों और संकाय से बातचीत करते हुए कहा कि भारत अनेक समृद्ध भाषाओं की भूमि है. संस्कृत, बंगाली, हिंदी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और कई अन्य भाषाएं कई भाषाएं हैं. यहां तक कि संसद में भी 22 भाषाओं में एक साथ अनुवाद की व्यवस्था है. हमारी सभ्यता की मूल भावना समावेशिता की बात करती है. क्या भारत की भूमि पर भाषा को लेकर टकराव की स्थिति होनी चाहिए?

उन्होंने कहा कि जब हाल ही में कई भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया, तो यह हम सभी के लिए गर्व का क्षण था. हमें हर भाषा को संजोना होगा. हमारी भाषाएं वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान रखती हैं. वे साहित्य का खजाना हैं और उनमें ज्ञान तथा बुद्धिमत्ता समाहित है-वेद, पुराण, हमारे महाकाव्य रामायण, महाभारत और गीता.

धनखड़ ने पूर्व छात्रों के संघों के महत्व को लेकर कहा कि विश्वविद्यालयों को देखिए, उनके एंडोमेंट फंड देखिए. अरबों अमेरिकी डॉलर. मैंने जब इस पर एक नजर डाली, तो मैं चकित रह गया.

उन्होंने कहा कि शीर्ष सूची में देखें तो लगभग 50 अरब अमेरिकी डॉलर के करीब पहुंच रहे हैं. हमारे पास ऐसा क्यों नहीं है? हमारे पास भी पूर्व छात्र हैं. हमारे पूर्व छात्र संस्थानों के लिए कोष में योगदान दें. राशि महत्वपूर्ण नहीं है, योगदान की भावना ही संस्थान से जुड़ाव पैदा करती है. यह उनके लिए भी गर्व की बात होगी.

कॉरपोरेट्स से रिसर्च में निवेश करने का किया आह्वान

उन्होंने आगे कहा कि मैंने एक विचार प्रस्तुत किया है. मुझे आशा है कि कोई इस पर काम करेगा. हमारे पास IIT, IIM और अन्य उत्कृष्ट संस्थान हैं. उनके पूर्व छात्रों के संघों को एक महासंघ बनाना चाहिए. यह नीति निर्माण के लिए एक शीर्ष वैश्विक मानक थिंक टैंक होगा. यह अनुसंधान और नवाचार को भी प्रोत्साहित कर सकता है.

कॉरपोरेट्स को अनुसंधान और नवाचार में निवेश करने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि सबसे पहले हमारे कॉरपोरेट्स. मैं उनकी आलोचना नहीं कर रहा, बल्कि उनका मूल्यांकन कर रहा हूं. उन्हें अनुसंधान में निवेश करना चाहिए, उन्हें विकास और नवाचार के लिए निवेश करना चाहिए.

अब कूटनीति निर्णायक भूमिका निभा रही है

उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें वैश्विक दिग्गजों से प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए, क्योंकि यह निवेश केवल किसी छात्र या संस्थान के लिए नहीं, बल्कि हमारे वर्तमान और भविष्य के लिए है. विश्वास कीजिए, वैश्विक रणनीतिक प्रणाली में बड़ा परिवर्तन आया है. पारंपरिक युद्ध प्रणाली समाप्त हो चुकी है, अब कूटनीति ही निर्णायक भूमिका निभाती है.

उन्होंने कहा कि नवाचार और अनुसंधान हमें सॉफ्ट डिप्लोमेसी में बढ़त दिलाते हैं और हमें एक महाशक्ति बनाते हैं. इसलिए, मैं इस मंच से अपील करता हूं—कॉरपोरेट्स, पश्चिमी देशों में आपके समकक्ष क्या कर रहे हैं, इसका अध्ययन करें, कृपया उनके बराबर आएं.