युवाओं की आत्महत्याएं दर्शाती हैं व्यवस्थागत विफलता : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने युवाओं में आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को लेकर गहरी चिंता जताई है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने शुक्रवार को कहा कि देश में युवाओं की जानें जाने की घटनाएं किसी व्यक्तिगत विफलता का नहीं, बल्कि एक व्यापक व्यवस्थागत खामी का संकेत हैं, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

एनसीआरबी के आंकड़ों ने खोली चिंता की परतें

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा ‘भारत में आकस्मिक मौतें और आत्महत्याएं 2022’ शीर्षक से जारी आंकड़ों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि ये आँकड़े देश में युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य की चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं। आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022 में देश में कुल 1,70,924 आत्महत्याएं दर्ज की गईं, जिनमें से करीब 7.6 प्रतिशत यानी 13,044 मामले छात्रों के थे। इनमें से 2,248 आत्महत्याएं परीक्षा में असफलता के कारण हुई थीं। वर्ष 2001 में यह संख्या 5,425 थी, जो 2022 तक बढ़कर दोगुनी से भी अधिक हो गई।

शैक्षणिक संस्थानों के लिए दिशानिर्देश जारी

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आत्महत्याएं अक्सर मानसिक दबाव, परीक्षा का तनाव, सामाजिक बदनामी और संस्थागत संवेदनशीलता की कमी जैसे ऐसे कारणों से होती हैं, जिन्हें समय रहते रोका जा सकता है। इसी संदर्भ में पीठ ने शैक्षणिक संस्थानों के लिए 15 आवश्यक दिशानिर्देश जारी किए हैं, जिनका अनुपालन अनिवार्य रहेगा, जब तक कि केंद्र या राज्य सरकार छात्र आत्महत्याएं रोकने हेतु कोई विधिक या नियामक ढांचा तैयार नहीं कर लेती। इन दिशानिर्देशों पर अमल की रिपोर्ट 90 दिनों में मांगी गई है।

नीट छात्रा की मौत पर सीबीआई जांच का आदेश

पीठ ने यह आदेश विशाखापत्तनम में एक 17 वर्षीय नीट अभ्यर्थी की रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मौत के मामले की सुनवाई के दौरान दिया। छात्रा हॉस्टल की छत से गिर गई थी। हाईकोर्ट ने मामले की सीबीआई जांच की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था, जिसके खिलाफ यह अपील दाखिल की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंपने का आदेश दिया है।

मानसिक स्वास्थ्य संकट को समझना जरूरी

कोर्ट ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है। कोटा, जयपुर, सीकर, दिल्ली, हैदराबाद और विशाखापत्तनम जैसे शहरी केंद्रों में पढ़ाई के लिए आने वाले छात्रों की बढ़ती आत्महत्याएं इस बात की मांग करती हैं कि इन क्षेत्रों में तत्काल प्रभाव से मानसिक स्वास्थ्य और परामर्श सेवाओं को मजबूत किया जाए।

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