वर्ष 2022 में जम्मू-कश्मीर के सांबा स्थित सैन्य अस्पताल में भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के एक सैनिक को दूषित रक्त चढ़ाया गया था। इस वजह से सैनिक को एड्स जैसी गंभीर बीमामी से जूझना पड़ा था। अब आईएएफ ने देश की सर्वोच्च अदालत को सूचित किया है कि सैनिक को मुआवजे के रूप में 18 लाख रुपये दिए गए हैं। आईएएफ ने बताया कि सैनिक को कुल मिलाकर अब तक 1.41 करोड़ रुपये से अधिक की मुआवजा राशि दी गई है। शीर्ष अदालत ने विछले वर्ष 26 सितंबर को आईएएफ को आदेश दिया था कि सैनिक को मुआवजा राशि के रूप में 1.5 करोड़ रुपये दिए जाएं। दरअसल, 13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर आतंकवादी हमले के बाद ऑपरेशन पराक्रम शुरू किया गया था। इस दौन पूर्व सैनिक बीमार पड़ गए थे। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराकर रक्त चढ़ाना पड़ा था।इस वर्ष अप्रैल के महीने में सुप्रीम कोर्ट ने अपने वर्ष 2023 के फैसले की समीक्षा करने से इनकार कर दिया था। वर्ष 2023 में शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘याचिकाकर्ता को मुआवजा दिया जाना चाहिए। इलाज में लापरवाही के कारण मुआवजे के रूप में 1,54,73,000 रुपये दिए जाने चाहिए।’

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की सीलबंद रिपोर्ट

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने शीर्ष अदालत में अपनी ‘सीलबंद रिपोर्ट’ दाखिल की है। दरअसल कुछ समय पहले दो जिला एवं सत्र न्यायालय के न्यायाधीशों ने आरोप लगाया था कि हाईकोर्ट के कॉलेजियम में न्यायाधीश के लिए उनकी योग्यता को अनदेखा किया गया। जिला एवं सत्र न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश चिराग भानु सिंह और अरविंद मलहोत्रा की तरफ से शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल की गई थी। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने पिछले वर्ष 11 दिसंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखा था। पत्र में सीजेआई से सुझाव मांगा गया था कि क्या उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में पदोन्नति के लिए चिराग भानु सिंह और अरविंद मल्होत्रा की उपयुक्तता के बारे में किसी और जानकारी की आवश्यकता है। सूत्रों का कहना है कि इस मामले में हाईकोर्ट को छह महीने बाद भी सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कोई सुझाव नहीं मिला। शीर्ष अदालत में सुनवाई के लिए सोमवार को सिंह और मलहोत्रा की याचिकाएं आईं थीं।